प्राचीन भारत में हिरण्यकश्यप नाम का एक असुर हुआ करता था और वह स्वयं को भगवान मानता थाI हिरण्यकश्यप को लम्बी तपस्या करने के बाद भगवान ब्रह्मा से वरदान मिला था जिससे ना उसे दिन में मारा जा सकता था और ना ही रात, ना घर के अंदर मारा जा सकता था और ना ही घर के बाहर, ना धरती और ना ही आसमान, ना अस्त्र से ना शस्त्र सेI यह वरदान जिसके सर पर हावी हो चूका था, इसका दुरुपयोग कर के वह कई लोगों पर दुरुपयोग करने लगाI उसका कहना था कि लोग भगवान की पूजा करना छोड़ कर उसकी पूजा करें। कुछ समय बाद उसका एक बेटा हुआ जिसका नाम उसने प्रहलाद रखाI बचपन से ही प्रह्लाद भगवान विष्णु को मानते थे और उनकी भक्ति में लीन रहते थेंI यह सब देख हिरण्यकश्यप अपने बेटे से बहुत क्रोधित हो गया और उसे भगवान विष्णु की पूजा करने से रोकने लगाI इतने पर भी प्रह्लाद उनकी भक्ति में लीन रहते थें और यह देख हिरण्यकश्यप ने अपने ही बेटे की हत्या करने के लिए कई नीतियां भी बनाई और वह संभव नहीं हो सकाI
होली के दिन, किए-कराए बुरी नजर आदि से मुक्ति के लिए कराएं कोलकाता में कालीघाट स्थित काली मंदिर में पूजा - 28 मार्च 2021
इतना कुछ होने पर उसने एक और नीति अपने, हिरण्यकश्यप अपनी बहन होलिका से कहा कि वह उसके बेटे प्रहलाद को लेकर आग में बैठ जाए क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग से कभी नहीं जल सकती। अपने भाई की बात मान कर उसने प्रहलाद को अपने गोद में लेकर आग गयी. इससे प्रह्लाद को एक खरोच न आकर वह खुद आग में जलकर भस्म हो गयीI उसी दिन से होलिका दहन मनाने की चलन शुरू हुईI होलिका ने अपनी शक्ति का गलत इस्तेमाल किया और इसलिए ऐसा कहा जाता है कि होलिका दहन में सभी बुराइयों को जला देना चाहिए और नई शुरुआत करनी चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु ने दिन और रात के बीच प्रकट होकर हिरण्यकश्यप का भी अंत कर दिया।
लोग होलिका दहन के अगले दिन रंगों से यह त्योहार मनाते हैं क्योंकि यह तब शुरू हुआ जब भगवान कृष्ण अपने मित्रों के साथ वृन्दावन में रंगों के साथ होली खेलना शुरू किया और उस समय रंगों को कई प्रकार के फूलों से बनाया जाता था और लोग बड़े हर्ष और उल्लास के साथ एक दूसरे को रंग लगाते थेI
यह भी पढ़े :-
क्यों ख़ास है इस वर्ष होली ? जानें इस दिन करें कौन से विशेष उपाय
मीन संक्रांति-तन, मन और आत्मा को शक्ति प्रदान करता है। ज्योतिषाचार्या स्वाति सक्सेना
मीन सक्रांति आखिर क्यों मनायी जाती है