saraswati Chalisa
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वाणी, ज्ञान, संगीत, कला की अधिष्ठात्रि देवी सरस्वती जी प्रकृति के आनंद एवं रस की देवी हैं. चेतना के मुक्त प्रवाह का प्रतिनिधित्व करती हैं. वह वेदों की जननी हैं, और उन्हें निर्देशित मंत्र, जिन्हें 'सरस्वती वंदना' "सरस्वती चालिसा" के रुप में जाता है, मान्यता है कि देवी सरस्वती मनुष्य को वाणी, ज्ञान और विद्या की शक्तियों से संपन्न करती हैं. सरस्वती चालिसा का पाठ करके बुद्धि ओर ज्ञान को प्राप्त करना अत्यंत सरल होता है . देवी सरसवती चालीसा का गुणगान मनुष्य को भाषण, ज्ञान और सीखने की शक्ति प्रदान करता है.
जब जिंदगी में अंधकार भर जाए। कोई रास्ता आप को ना समझ आए। तो इस मुश्किल समय में मां सरस्वती की चालीसा का पाठ करें।जिससे आपकी समस्याओं का निवारण आसानी से हो जाएगा। और मां आपको सही दिशा प्रदान करेंगी।
सरस्वती चालीसा -
॥ दोहा ॥
जनक जननि पद कमल रज, निज मस्तक पर धारि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
रामसागर के पाप को, मातु तुही अब हन्तु॥
बसंत पंचमी कल : जानें सरस्वती पूजा विधि एवं सटीक शुभ मुहूर्त
॥ अथ चौपाई ॥
जय श्री सकल बुद्धि बलरासी। जय सर्वज्ञ अमर अविनासी॥
जय जय जय वीणाकर धारी। करती सदा सुहंस सवारी॥
रूप चतुर्भुजधारी माता। सकल विश्व अन्दर विख्याता॥
जग में पाप बुद्धि जब होती। जबहि धर्म की फीकी ज्योती॥
तबहि मातु ले निज अवतारा। पाप हीन करती महि तारा॥
बाल्मीकि जी थे हत्यारा। तव प्रसाद जानै संसारा॥
रामायण जो रचे बनाई। आदि कवी की पदवी पाई॥
कालिदास जो भये विख्याता। तेरी कृपा दृष्टि से माता॥
तुलसी सूर आदि विद्धाना। भये और जो ज्ञानी नाना॥
तिन्हहिं न और रहेउ अवलम्बा। केवल कृपा आपकी अम्बा॥
बसंत पंचमी के दिन ही हुई थी भगवान शिव और पार्वती की सगाई
करहु कृपा सोइ मातु भवानी। दुखित दीन निज दासहि जानी ॥
पुत्र करै अपराध बहूता। तेहि न धरइ चित सुन्दर माता॥
राखु लाज जननी अब मेरी। विनय करूं बहु भांति घनेरी॥
मैं अनाथ तेरी अवलंबा। कृपा करउ जय जय जगदंबा॥
मधु कैटभ जो अति बलवाना। बाहुयुद्ध विष्णू ते ठाना॥
समर हजार पांच में घोरा। फिर भी मुख उनसे नहिं मोरा॥
मातु सहाय भई तेहि काला। बुद्धि विपरीत करी खलहाला॥
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी। पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥
चंड मुण्ड जो थे विख्याता। छण महुं संहारेउ तेहि माता॥
रक्तबीज से समरथ पापी। सुर-मुनि हृदय धरा सब कांपी॥
काटेउ सिर जिम कदली खम्बा। बार बार बिनवउं जगदंबा॥
जग प्रसिद्ध जो शुंभ निशुंभा। छिन में बधे ताहि तू अम्बा॥