भैरव
शिव महापुराण के अनुसार जब ब्रह्मा और विष्णु स्वयं को सर्वोपरि मानने लगे, तभी वहां एक तेज पूंज के मध्य एक पुरुषाकृति दिखाई पड़ी। पुरुषाकृति को देखकर ब्रह्माजी ने कहा चंद्रशेखर तुम मेरे पुत्र हो इसलिए तुम मेरी शरण में आ जाओ। भगवान शिव को ब्रह्मा जी की ऐसी बात सुनकर क्रोध आ गया तब उन्होंने उस पुरुषाकृति से कहा काल की शांति शोभित होने के कारण तुम कालराज हो एव भीषण होने के कारण काल भैरव हो। महाकाल से इन वर को प्राप्त कर कालभैरव ने अपनी उंगली से ब्रह्मा जी के पांचवें सिर को काट दिया था। माना जाता है। ब्रह्मा जी के सिर काटने के बाद जब काल भैरव को ब्रह्महत्या का पाप लगा तो काशी में ही काल भैरव को ब्रह्माहत्या से मुक्ति मिली थी।