हम मनुष्य से ही नहीं बल्कि देवी-देवताओं से भी अनजाने में गलती हो जाती हैं, जिसकी सजा भी उन्हें मिलती हैं। ऐसी ही एक लगती यमराज से भी हुई जिनकी सजा उन्हें ये मिली की उन्हें पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ा। कहते हैं जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ़ता है, तब पृथ्वी पर समय-समय पर देवी-देवतओं ने मनुष्य के रूप में जन्म लिया। ईश्वर अपने साकार रूप में पृथ्वी पर प्रकट होते हैं। अगर बात करें भगवान विष्णु के अवतारों की तो अब तक उन्होंने 23 अवतार लिए हैं, जिनमें मत्स्य अवतार, कूर्म अवतार, वराह अवतार, नृसिंह अवतार, वामन अवतार, परशुराम अवतार, राम अवतार, कृष्ण अवतार और बुद्ध के रूप में भगवान विष्णु ने अवतार लिया हैं। कहा जाता है कि भगवान विष्णु का चौबीसवां अवतार कलयुग में ‘कल्कि अवतार’ के रूप में होना बाकी हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि मृत्यु का लेखा जोखा रखने वाले यमराज ने भी पृथ्वी पर अवतार लिया था। यदि नहीं तो आज हम आपको बताएंगे कि मृत्यु के देवता कहे जाने वाले यमराज को आखिर क्यों, कब और किस के रूप में अवतार लेना पड़ा था।
मृत्यु के पश्चात यमराज हम मनुष्यों को हमारे कर्मों के अनुसार हमारे मृत्यु उपरांत जगह यानी की स्वर्ग या नर्क प्रदान करते हैं, लेकिन एक बार कुछ ऐसा हुआ था की मृत्यु के देव यम को खुद धरती पर अवतार लेना पड़ा था। आइए जानते हैं की खुद यमराज को अपनी किस गलती की सजा पाने के लिए पृथ्वी पर मनुष्य रूप में जन्म लेना पड़ा था।
श्राप के कारण पृथ्वी पर हुआ जन्म:
मान्यता है कि यमदूत किसी भी मनुष्य की मृत्यु के बाद मनुष्यों को उनके कर्मों के अनुसार फल देने के लिए मृत्यु के देवता यमराज के पास ले जाते हैं, लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है कि स्वयं दण्डाधिकारी यमराज को भी किसी गलती का फल भोगने के लिए धरती पर आना पड़ा हो। आश्चर्य किंतु सत्य, एक बार एक ऋषि के श्राप के कारण स्वयं यमराज को अपनी गलती का दंड भुगतने हेतु पृथ्वीलोक में मनुष्य का शरीर धारण कर जन्म लेना पड़ा था।
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यमराज के अवतार की कथा:
कहते हैं कि महाभारतकाल में माण्डव नाम के एक ऋषि को एक राजा ने भूल से चोरी की सजा में फांसी पर लटकाने की सजा सुना दी थी, सजा सुनने के बाद राजा के सैनिकों ने उन्हें सूली पर लटका दिया, लेकिन एक आश्चर्य वाली बात ये हुई कि सूली पर लटकाने के कुछ दिन बाद भी उनके प्राण नहीं निकले,राजा अहसास हुआ कि शायद उन्होने गलत निर्णय लिया हैं। उन्होंने माण्डव ऋषि को तत्काल उतरवा कर अपनी गलती के लिए माफी मांगी और उन्हें आदर के साथ अपने महल से विदा किया।
इस महात्मा के रूप में लिया जन्म:
राजा के महल से निकलने के बाद माण्डव ऋषि यमराज के पास पहुंचे और उन्होंने यमराज से पूछा कि आखिर मैंने कौन सा अपराध किया था, जो मुझे इसकी बड़ी सजा मिली, मुझे इस तरह तड़पना पड़ा लेकिन ओहुर भी मेरे प्राण नहीं निकले। तब यमराज ने ऋषि को बताया कि आप जब 12 साल के थे तब आपने एक पतंगे की पूंछ में सींक चुभो दी थी, जिससे उसे बहुत कष्ट भोगना पड़ा था, बस उसी के कारण आपको इतना कष्ट भोगना पड़ा है।यमराज की बातों पर माण्डव ऋषि को बहुत गुस्सा आ गया और उन्होंने कहा कि 12 साल के बच्चे को धर्म-अधर्म का ज्ञान नहीं होता है,और तुमने मुझे एक छोटे से अपराध के लिए इतनी बड़ी सजा दे दी, माण्डव ऋषि क्रोधित हो गए और उन्होने यमराज को तुरंत श्राप देते हुए कहा कि तुम शूद्र योनि में एक दासी के घर में जन्म ले लेना पड़ेगा और तुम वो सारे कष्ट भोगेंगे जो एक आम मनुष्य को होता है।इसके बाद ऋषि के श्राप के कारण यमराज को महाभारतकाल में विदुर के रूप में जन्म मिला था।
विदुर महाभारत काल के एक महान दार्शनिक और महत्वपूर्ण पात्र थे। वे हस्तिनापुर के प्रधानमंत्री, कौरवों व पांडवों के काका और धृतराष्ट्र एवं पाण्डु के भाई थे, विदुर बहुत बड़े ज्ञातक थे उन्होंने ने अपनी नीतियों के जरिए महाभारत युद्ध को रोकने का भी प्रयास किया था, हालंकि वे इसे रोकने पर नाकाम रहें थे।
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