प्रदोष व्रत का महत्व
प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में यानी सूर्यास्त के बाद की जाती है, इसी वजह से प्रदोष व्रत शनिवार 24 अप्रैल को ही माना जा रहा है, क्योंकि आज ही शाम से त्रयोदशी तिथि लग रही है। मान्यता है कि शनि प्रदोष का व्रत रखने के बाद शनि से जुड़ी वस्तुओं का दान करना चाहिए। ऐसा करने से शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या में आपको राहत मिलती है। वहीं कुछ लोग प्रदोष का व्रत संतान की प्राप्ति के लिए भी रखते हैं ।
त्रयोदशी तिथि और पूजा मुहूर्त-
वैशाख त्रयोदशी तिथि आरंभ- 08 मई 2021 शाम 05 बजकर 20 मिनट से
वैशाख त्रयोदशी तिथि समाप्त- 09 मई 2021 शाम 07 बजकर 30 मिनट पर
पूजा समय- 08 मई शाम 07 बजकर रात 09 बजकर 07 मिनट तक
पूजा की कुल अवधि 02 घंटे 07 मिनट रहेगी।
प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में की जाती है इसलिए प्रदोष व्रत 08 मई को किया जाएगा।
लाभ
शास्त्रों में शिवजी को शनिदेव का आराध्य माना गया है, इसलिए प्रदोष में शनि की पूजा करने से आपकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है और शनि की दशा में भी राहत मिलती है। शनि प्रदोष में शनि स्त्रोत का पाठ करना भी जरूरी माना जाता है।
हर माह कुछ तिथियाँ पड़ती है । जिनमें कुछ तिथियों पर विवाहित स्त्री के द्वारा व्रत भी रखा जाता है । जिसे व्रती हर माह पूरे विधि विधान से करती है।
प्रदोष भी कुछ इस तरह का है जिसे करने से उनके सभी दोष खत्म हो जाते हैं इसलिए प्रदोष व्रत के अपने मायने हैं बता दे की शनि को पड़ने वाली प्रदोष का अपना महत्व है जिसे करने से व्रती पर भगवान शिव की कृपा तो होती है । साथ ही भगवान शिव की कृपा से अगर उस व्रती पर शनि देव के साढ़े साती का प्रभाव है तो शिव की कृपा से उसका प्रभाव कम हो जाता है।
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