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श्राद्ध पक्ष में पूजन हेतु गया भूमि महत्वपूर्ण क्यों ?

Myjyotish Expert Updated 28 Aug 2020 07:03 PM IST
Gyaa : shradh Poojan
Gyaa : shradh Poojan - फोटो : Myjyotish
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ब्रह्माजी जब सृष्टि की रचना कर रहे थे। उनसे असुर कुल में गया नामक असुर बन गया। गया असुरों की संतान रूप में पैदा नहीं हुआ था, इसलिए उसमें आसुरी प्रवृति नहीं थी। वह सभी देवताओं का सम्मान और आराधना करता था। गयासुर ने कठोर तप करके भगवान श्री विष्णुजी को प्रसन्न किया। भगवान ने गयासुर को वरदान मांगने को कहा तो गयासुर ने भगवान विष्णु से उसके शरीर में  वास करने का वरदान मांगा और कहा के जो मुझे देखे तो उसके सारे पाप नष्ट हो जाएं।

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भगवान श्री हरी से वरदान पाकर गयासुर घूम-घूमकर लोगों के पाप दूर करने लगा। गयासुर के इस कर्म से यमराज की व्यवस्था गड़बड़ा गई, कोई भी घोर पापी गयासुर के दर्शन कर लेता तो उसके सभी पाप नष्ट हो जाते। धर्मराज को कर्मो का हिसाब रखने में संकट हो गया था। यमराज ने ब्रह्माजी से कहा कि अगर गयासुर को अभी न रोका गया तो आपका वह विधान समाप्त हो जाएगा जिसमें आपने सभी को उनके कर्मो के अनुसार फल भोगने की व्यवस्था दी है। पापी भी गयासुर के प्रभाव से स्वर्ग भोगने लगते है।

ब्रह्माजी ने उसी समय उपाय निकाला, उन्होंने गयासुर से कहा कि तुम्हारा शरीर सबसे अधिक पवित्र है इसलिए मैं तुम्हारी पीठ पर बैठकर सभी देवताओं के साथ यज्ञ करुंगा। ब्रह्माजी सभी देवताओं के साथ एक पत्थर से गयासुर को दबाकर बैठ गए। इतने भार के बावजूद भी वह अचल नहीं हुआ और वह घूमने-फिरने में फिर भी समर्थ था। देवताओं को चिंता हुई, उन्होंने आपस में सलाह की कि इसे भगवान श्री विष्णु ने वरदान दिया है इसलिए अगर स्वयं श्री हरि भी देवताओं के साथ बैठ जाएं तो गयासुर अचल हो जाएगा। तब श्री हरि भी उसके शरीर पर आकर बैठ गए।

भगवान श्री विष्णु जी को भी सभी देवताओं के साथ अपने शरीर पर बैठा देखकर गयासुर ने कहा- आप सब देवता और मेरे आराध्य श्री हरि की मर्यादा के लिए अब मैं अचल हो रहा हूं, सभी जगह घूम-घूमकर लोगों के पाप हरने का कार्य बंद कर दूंगा। लेकिन मुझे श्री हरि का आशीर्वाद है इसलिए वह व्यर्थ नहीं जा सकता इसलिए श्री हरि आप मुझे पत्थर की शिला बना दें और यहीं स्थापित कर दें। भगवान श्री हरि उसकी इस भावना से बड़े खुश हुए, उन्होंने गयासुर से कहा अगर तुम्हारी कोई और इच्छा हो तो मुझसे वरदान के रूप में मांग लो।

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गयासुर ने कहा- ” हे नारायण मेरी इच्छा है कि आप सभी देवताओं के साथ अप्रत्यक्ष रूप से इसी शिला पर विराजमान रहें और यह स्थान मृत्यु के बाद किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों के लिए तीर्थस्थल बन जाए।” भगवान श्री विष्णु ने कहा- गया तुम धन्य हो, तुमने जीवित अवस्था में भी लोगों के कल्याण का वरदानमांगा और मृत्यु के बाद भी मृत आत्माओं के कल्याण के लिए वरदान मांग रहे हो। तुम्हारी इस कल्याणकारी भावना से हम सब बंध गए हैं। तब भगवान श्री हरि ने आशीर्वाद दिया कि जहां गया स्थापित हुआ वहां पितरों के श्राद्ध-तर्पण आदि करने से मृत आत्माओं को पीड़ा से मुक्ति मिलेगी। 

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