हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार जब सूर्य कन्या राशि मे प्रवेश करते हैं तो तब मृत्युलोक से पितृ अपने स्वजनों के पास धरती पर आते हैं। शास्त्रों में पिता को वसु , रुद्र को दादा और परदादा को आदित्य के समान माना जाता हैं। श्राद्ध में तीन पीढ़ियों के पितरों को महत्व दिया गया हैं । इसके पीछे कारण है कि इंसान की स्मरण शक्ति सिर्फ तीन पीढ़ियों तक ही सीमित हैं। यह भी कहा जाता है कि इन दिनों सभी पूर्वज पृथ्वी पर सुक्ष्म रूप में आकर उनके लिए किए गए तर्पण को ग्रहण करते हैं।
घर बैठें श्राद्ध माह में कराएं विशेष पूजा, मिलेगा समस्त पूर्वजों का आशीर्वाद
श्राद्ध में जलदान पिंडदान पिंड के रूप में पितरो को समर्पित किया जाता हैं । पितृ ऋण को चुकाने के लिए श्राद्ध किया जाता हैं। पौराणिक तीर्थ नैमिषारण्य में पिंडदान का विशेष महत्व है। काशीकुंड पर किए गए पिंडदान से पितरों को मुक्ति मिलती है।
श्राद्ध में जल और तिल को पूर्वजों को अर्पित किया जाता है । ऐसा कहा जाता है कि जल एक मात्र ऐसी चीज़ है जो जन्म से मोक्ष तक साथ देती हैं। तिल की अपनी अलग विशेषता है कहा जाता है इसी के अर्पण से पितरों को तृप्ति मिलती हैं।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार तर्पण का जल सूर्योदय से आधे प्रहर तक अमृत के रूप में , एक प्रहर तक शहद के रूप में , डेढ़ प्रहर तक दूध के रूप में और साढ़े तीन बजे तक जल के रूप में पितरों को प्राप्त होता हैं । पितरों को अमृत की प्राप्ति हो इसलिए जातक को सूर्योदय के वक़्त ही जल तर्पण कर देना चाहिए ।
जल अर्पित करते समय इस मंत्र का तीन बार जाप करें।
'ओम सर्वपितृ देवाय नमः।'
इस पितृ पक्ष गया में कराएं श्राद्ध पूजा, मिलेगी पितृ दोषों से मुक्ति : 01 सितम्बर - 17 सितम्बर 2020
हर साल विश्व प्रसिद्ध मेले पितृ मेले का आयोजन होता है, परंतु इस वर्ष कोरोना के चलते ऐसा नही होगी । सितंबर में लगने वाले इस मेले को बिहार सरकार ने जनहित के लिए स्थगित कर दिया है । इस वर्ष नवरात्रि भी श्राद्ध के तुरंत बाद नहीं बल्कि 1 महीने बाद है। इसका कारण अधिक मास है । ज्योतिषों की माने तो कई सौ साल बाद ऐसा संजोग बना हैं कि लीप ईयर और अधिक मास साथ आया हैं।
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