शास्त्रों में श्राद्ध का भोजन करने के विषय में कुछ ख़ास व आवश्यक नियम बताए गए हैं। जो व्यक्ति श्राद्ध के दौरान इनका पालन करते हैं उनके जीवन में आने वाले कष्टों से बचाव खुद उनके पूर्वज करते हैं। अन्य घर का श्राद्ध भोजन कभी भी ग्रहण नहीं करना चाहिए, लेकिन अपने कुल गोत्र के परिवार जन में भोजन करने पर कोई दोष नहीं लगता।श्राद्ध का भोजन अत्ताधिक शुद्धि चाहता है।
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संध्या भोजन के समय रखें इन बातों का ख़ास ख्याल :-
1:खीर पूरी अनिवार्य है।
2:जौ, मटर और सरसों का उपयोग श्रेष्ठ है।
3: ज्यादातर पकवान पितरों की पसंद के होने चाहिए।
4:गंगाजल, दूध, शहद, कुश और तिल सबसे ज्यादा ज़रूरी है।
5:तिल ज़्यादा होने से उसका फल अक्षय होता है।
ब्राह्मणों का आसन कैसा हो:
उन्हें रेशमी, ऊनी, लकड़ी, कुश जैसे आसन पर भी बैठाएं। ध्यान रहें लोहे के आसन पर ब्राह्मणों को कभी न बैठाएं ।
कहा जाता है साधक को श्राद्ध का भोजन नहीं करना चाहिए। क्योंकि इससे स्वाध्याय की बढ़ोत्तरी होती है। स्वाध्याय, अर्थात अपने कर्मों का चिंतन करना। कहा जाता है अगर हम ऐसे संस्कारों के साथ श्राद्धस्थल भोजन करने जाएंगे, तो वहां के रज-तमात्मक वातावरण का अधिकतर प्रभाव हमारे शरीर पर होता है। जिससे हमें अधिक कष्ट हो सकता है। वहीं यदि कोई इंसान साधना करता है, तो श्राद्ध का भोजन करने से उसके शरीर में सत्त्वगुण की मात्रा घट सकती है। इसलिए, आध्यात्मिक दृष्टी से श्राद्ध का भोजन करना लाभदायक नहीं माना जाता।
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यही कारण है कि हिंदू धर्म में बताया गया है कि उपरोक्त कृत्य टालकर ही श्राद्ध का भोजन करना चाहिए। अन्यथा कलह से मनोमयकोष में रज-तम की मात्रा बढ़ जाती है। जिससे हमारी थकान तो अवश्य मिट जाती है, पर शरीर में तमोगुण भी बढ़ जाता है। इसलिए कोशिश करें कि श्राद्ध पक्ष तक मृतकों के घर निमित्त बनाएं गए भोजन को ग्रहण न करें।
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