कई स्थानों पर विनायक चतुर्थी को “वरद विनायक चतुर्थी” कहकर भी संबोधित किया जाता है। विनायक चतुर्थी के दिन भक्त श्री गणेश की पूजा दोपहर के समय करते हैं। ये पूजा और व्रत बेहद महत्वपूर्ण और लाभप्रद होता है। अभी 25 जुलाई से हिंदी वर्ष के पांचवे महीने यानी श्रावण मास की शुरुआत हो चुकी है। इस हिसाब से श्रावण मास की संकष्टी चतुर्थी पार हो चुकी है और विनायक चतुर्थी जल्द ही आने वाली है। तो आइए जानते हैं श्रावण मास के विनायक चतुर्थी की तिथि, उसका शुभ मुहूर्त तथा अन्य संबंधित जानकारी।
विनायक चतुर्थी की तिथि एवं शुभ मुहूर्त
इस वर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि 12 अगस्त गुरुवार के दिन पड़ रही है। इस तिथि की शुरुआत 11 अगस्त को 04 बजकर 53 मिनट से होगी और इसका समापन अगले दिन यानी 12 अगस्त को 03 बजकर 24 मिनट पर होगा। अब क्योंकि सूर्योदय 12 अगस्त को होगा इसलिए इसी दिन विनायक चतुर्थी मनाई जाएगी। व्रती भी इसी दिन अपना व्रत रखेंगे।
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विनायक चतुर्थी की पूजा एवं व्रत
सर्वप्रथम तो प्रातः जल्दी उठकर स्नानादि कर लें। स्नान करके साफ और लाल रंग के वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल की साफ-सफाई कर लें और यदि आप व्रत करने वाले हों तो इसी समय व्रत का संकल्प ले लें। ध्यान रहे कि यदि आप व्रत पूर्ण कर सकते हैं तभी संकल्प लें। दोपहर को पूजा के समय पूजा स्थल पर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें। ये प्रतिमा सोना, चांदी, तांबा, पीतल अथवा माटी से बना हुआ भी हो सकता है। आप प्रतिमा का निर्माण किस चीज़ से करवाते हैं ये पूर्ण रूप से आपकी आर्थिक स्थिति और आपकी श्रद्धा पर है। आवश्यक ये है कि आपकी आस्था और भक्ति सच्ची होनी चाहिए।
इसके पश्चात षोडशोपचार विधि से भगवान गणेश का पूजन करें और आरती करें। श्री गणेश की प्रतिमा पर सिंदूर लगाएं। इसके बाद गणेश जी के मंत्र “ॐ गं गणपतयै” का उच्चारण करें। इस मंत्र का उच्चारण कुल 21 बार करें और हर बार मंत्र के साथ दूर्वा अर्पित करें। इसके बाद गणेश जी को भोग लगाएं। इसके लिए आप मोतीचूर के लड्डू का उपयोग कर सकते हैं। 21 लड्डू का भोग लगाकर उनमें से 5 लड्डू भगवान गणेश को अर्पित कर दें, 5 लड्डू ब्राह्मणों में बांट दे और बाकी लड्डू का प्रसाद के रूप में वितरण कर दें।
पूजा संपन्न होने के बाद ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और उन्हें दक्षिणा प्रदान करें। इसके बाद यदि आपने व्रत का संकल्प ना लिया हो तो आप भी संध्या के समय भोजन कर लें। अन्यथा उपवास जारी रखें। शाम के समय गणेश चतुर्थी की कथा, गणेश स्तुति, गणेश चालीसा, आदि सुनें या हो सके तो स्वयं इनका पाठ करें। इसके पश्चात जापमाला की मदद से “ॐ गणेशाय नमः” का जाप करें।
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