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Home ›   Blogs Hindi ›   Pitra paksha 2020 : Tripindi shradh meaning significance

Shradh Puja: क्या है त्रिपिंडी श्राद्ध जानें अर्थ एवं महत्व  

Myjyotish Expert Updated 10 Sep 2020 02:01 PM IST
Tripindi Shradh
Tripindi Shradh - फोटो : Myjyotish
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त्रिपिंडी श्राद्ध का अर्थ है पिछली तीन पीढ़ियों के हमारे पूर्वजों का पिंड दान करना। अगर पिछली तीन पीढ़ियों से परिवार में किसी का भी बहुत कम उम्र या बुढ़ापे में निधन हो गया हो तो उनका श्राद्ध करना बहुत जरुरी होता है।  उन लोगों को मुक्त अथवा उनकी आत्मा की शांति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध करना पड़ता है। प्रियजनों की याद में त्रिपिंडी श्राद्ध एक योगदान माना जाता है । ऐसा माना जाता है की यदि लगातार तीन वर्षों तक यह योगदान नहीं किया गया तो वह  प्रियजन (मृतक) क्रोधित हो जाते है । इसलिए उन्हें शांत करने के लिए यह योगदान किए जाते हैं।

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अधिकांश लोगों का विचार है कि त्रिपिंडी का अर्थ है 3 पीढ़ी के पूर्वजों (पिता-माता, दादाजी-दादी और परदादा- परदादी ) को संतुष्ट करना । लेकिन यह 3 पीढ़ियों के साथ प्रकट नहीं होता है। अपितु वह तीन  ‘अस्मदकुले’, ‘मातमहा’, भ्राता  पक्ष , ससुराल पक्ष और शिक्षक पक्ष का संकेत देते हैं।

कोई भी आत्मा जो अपने जीवन में शांत नहीं है और शरीर छोड़ चुकी है, भविष्य की पीढ़ियों को परेशान करती है। ऐसी आत्मा को ‘त्रिपिंडी श्राद्ध’ की सहायता से मोक्ष की प्राप्ति करवाई जा सकती  है। श्राद्ध का उद्देश्य पूर्वजों के लिए उनके अपने वंशजों द्वारा ईमानदारी से किया गया अनुष्ठान है।

त्रिपिंडी श्राद्ध में ब्रह्मा, विष्णु और महेश इनकी प्रतिमाए उनका प्राण प्रतिष्ठा पूर्वक पूजन किया जाता है| हमे सताने वाला, परेशान करने वाला पिशाच्च योनिप्राप्त जीवात्मा रहता है उसका नाम एवं गोत्र हमे द्न्यात नहीं होने से उसके लिए “अनादिष्ट गोत्र” का शब्दप्रयोग किया जाता है। अंत : इसके प्रेतयोनि प्राप्त उस जीव आत्मा को संबोधित करते हुए यह श्राद्ध किया जाता है। त्रिपिंडी श्राद्ध जीवनभर दरिद्रता अनेक प्रकार से परेशानियां श्राद्ध कर्म, और्ध्ववैदिक क्रिया शास्त्र के विधी के अनुसार न किए जाने के कारण भूत , प्रेत , गंधर्व , राक्षस , शाकिणी – डाकिणी , रेवती , जंबूस आदि द्वारा बाधा उत्पन्न होती है ।

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त्रिपिंडी और पंच पिंडी श्राद्ध एक ही होता है परंतु त्रिपिंडी में तीन स्थानों पर पिंड स्थापित होते हैं पहला होता है भगवान का , दूसरा पितृ का , तीसरा स्थान प्रेत का। इसलिए ही इसको त्रिपिंडी श्राद्ध कहते हैं क्योंकि इसमें तीन पिंड स्थापित होते हैं और पिंडों की पूजा होती है।

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