घर बैठें श्राद्ध माह में कराएं विशेष पूजा, मिलेगा समस्त पूर्वजों का आशीर्वाद
अधिकांश लोगों का विचार है कि त्रिपिंडी का अर्थ है 3 पीढ़ी के पूर्वजों (पिता-माता, दादाजी-दादी और परदादा- परदादी ) को संतुष्ट करना । लेकिन यह 3 पीढ़ियों के साथ प्रकट नहीं होता है। अपितु वह तीन ‘अस्मदकुले’, ‘मातमहा’, भ्राता पक्ष , ससुराल पक्ष और शिक्षक पक्ष का संकेत देते हैं।
कोई भी आत्मा जो अपने जीवन में शांत नहीं है और शरीर छोड़ चुकी है, भविष्य की पीढ़ियों को परेशान करती है। ऐसी आत्मा को ‘त्रिपिंडी श्राद्ध’ की सहायता से मोक्ष की प्राप्ति करवाई जा सकती है। श्राद्ध का उद्देश्य पूर्वजों के लिए उनके अपने वंशजों द्वारा ईमानदारी से किया गया अनुष्ठान है।
त्रिपिंडी श्राद्ध में ब्रह्मा, विष्णु और महेश इनकी प्रतिमाए उनका प्राण प्रतिष्ठा पूर्वक पूजन किया जाता है| हमे सताने वाला, परेशान करने वाला पिशाच्च योनिप्राप्त जीवात्मा रहता है उसका नाम एवं गोत्र हमे द्न्यात नहीं होने से उसके लिए “अनादिष्ट गोत्र” का शब्दप्रयोग किया जाता है। अंत : इसके प्रेतयोनि प्राप्त उस जीव आत्मा को संबोधित करते हुए यह श्राद्ध किया जाता है। त्रिपिंडी श्राद्ध जीवनभर दरिद्रता अनेक प्रकार से परेशानियां श्राद्ध कर्म, और्ध्ववैदिक क्रिया शास्त्र के विधी के अनुसार न किए जाने के कारण भूत , प्रेत , गंधर्व , राक्षस , शाकिणी – डाकिणी , रेवती , जंबूस आदि द्वारा बाधा उत्पन्न होती है ।
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त्रिपिंडी और पंच पिंडी श्राद्ध एक ही होता है परंतु त्रिपिंडी में तीन स्थानों पर पिंड स्थापित होते हैं पहला होता है भगवान का , दूसरा पितृ का , तीसरा स्थान प्रेत का। इसलिए ही इसको त्रिपिंडी श्राद्ध कहते हैं क्योंकि इसमें तीन पिंड स्थापित होते हैं और पिंडों की पूजा होती है।
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