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Shradh Puja: अष्टमी श्राद्ध के दिन करें पितरों का ध्यान, होंगी समस्त इच्छाएं पूर्ण

Myjyotish Expert Updated 09 Sep 2020 05:48 PM IST
अष्टमी श्राद्ध
अष्टमी श्राद्ध - फोटो : Myjyotish
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पितरों के प्रति कृत्यागत दर्शान का उन्हें याद करने का हिंदु धर्म व अन्य धर्मों में एक कर्म किया जाता हैं जिसे श्राद्ध कहते हैं। आश्विन कृष्ण पक्ष के 16 दिनों के समय में यह किया जाता हैं । श्राद्ध की मान्यताए बहुत हैं , इन दिनों लोग अपने पितरों को याद कर उन्हें पूजते हैं। गरुण पुराण में भी इसका महत्व समझाया गया हैं, कहा गया है की पितरों को मृत्युलोक में जगह नहीं मिलती जबतक उनका तर्पण न किया जाए । कहा जाता है कि पितृ प्रसन्न न हो तो पितृ दोष का श्राप मिलता हैं । ग्रंथों के अनुसार भगवान से पहले पितरों की पूजा आवश्यक हैं । वह प्रसन्न रहते है तभी भगवान भी प्रसन्न रहते हैं । यह भी कहा जाता है कि इन दिनों सभी पूर्वज पृथ्वी पर सुक्ष्म रूप में आकर उनके लिए किए गए तर्पण को ग्रहण करते हैं।

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श्राद्ध में हर दिन अलग-अलग श्राद्ध करनें का विधान हैं

अष्टमी श्राद्ध कर्म में आठ ब्राह्मणों को भोजन कराने का विधान है। श्राद्ध में गंगाजल, कच्चा दूध, तिल, जौ व मिश्री मिश्रित जल की जलांजलि दें उसके उपरांत पितृ पूजन करें। पितृगण के निमित्त, गौघृत का दीप करें, सुगंधित धूप करें, लाल फूल, लाल चंदन, तिल व तुलसी पत्ता समर्पित करें। जौ के आटे के पिंड समर्पित करें। फिर उनके नाम का नैवेद्य रखें। कुशासन पर बैठाकर पितृ के निमित्त भगवान विष्णु के गोविंद स्वरूप का ध्यान करते हुए गीता के आठवें अध्याय का पाठ करें व इस विशेष पितृ मंत्र का यथा संभव जाप करें। इसके उपरांत लौकी की खीर, पालक, पूड़ी, पालक की सब्ज़ी, मूंग दाल, हरे फल, लौंग-इलायची व मिश्री अर्पित करें। भोजन के बाद ब्राह्मणों को वस्त्र, मिश्री व दक्षिणा देकर आशीर्वाद लें।

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कौन होते हैं पितृ ?

परिवार के वह लोग जिनकी मृत्यु हो चुकी हैं , विवाहिता - अविवाहिता, बच्चे-बूढ़े , स्त्री-पुरुष जो भी हो उन्हें पितृ कहते हैं। घर में सुख शांति भी तभी होतीं है जब पितरों की आत्मा को शांति मिलती है । पितृ घर की खुशहाली देखते है और बिगड़ते काम भी बनाते है । अगर उनकी अनदेखी की जाए तो वह रुष्ट भी हो जाते है और बनते काम भी बिगड़ जाते हैं । 

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