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Namkaran Sanskar: शुभ नाम से खुलते हैं सुखी जीवन के द्वार, जानें नामकरण संस्कार का महत्व

Nisha Thapaनिशा थापा Updated 05 Jun 2024 01:54 PM IST
नामकरण संस्कार
नामकरण संस्कार - फोटो : My Jyotish

खास बातें

Namkaran Sanskar: नामकरण संस्कार 16 संस्कारों में से पांचवां संस्कार है और बच्चे के जन्म के उपरांत किया जाने वाला दूसरा संस्कार है। तो आइए जानते हैं कि नामकरण संस्कार का इतना अधिक महत्व क्यों होता है।
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Namkaran Sanskar: प्रकृति में उपस्थित प्रत्येक वस्तु और प्राणी की पहचान के लिए हम उसका नाम रखते हैं। नाम के आधार पर ही हम प्रत्येक व्यक्ति को पहचान सकते हैं। यदि नाम ना हो तो, व्यक्ति की पहचान करना मुश्किल हो जाता है। इसी प्रकार से 16 संस्कारों में पांचवां संस्कार नामकरण संस्कार है, जिसे शिशु के जन्म के बाद किया जाता है और यह जन्म के बाद किया जाने वाला दूसरा संस्कार है। नामकरण संस्कार में शिशु का नाम सोच समझकर ही रखना चाहिए, क्योंकि कहा जाता है कि जिस प्रकार का शिशु का नाम उसके आचरण में उसी प्रकार का स्वभाव आने लगता है। यदि नाम अच्छा है और अर्थ वाला है, तो उसका व्यक्तित्व भी अच्छा होगा। लेकिन इन दिनों लोग अपने बच्चों का नाम अपने नाम के अक्षरों को मिलकर ही रखते हैं, जिसका ना ही कोई अर्थ निकलता है और कहा जाता है कि बिना अर्थ वाले नाम का कोई भी मोल नहीं होता है। तो लिए इस लेख में जानते हैं कि नामकरण संस्कार का इतना अधिक महत्व क्यों है और उसे क्यों 16 संस्कारों की सूची में सम्मिलित किया गया है।
 

नामकरण संस्कार का महत्व


हमारे शास्त्रों में नामकरण संस्कार को बहुत अधिक महत्व दिया गया है, क्योंकि कहा जाता है कि मनुष्य का जैसा नाम होगा उसमें वैसे ही गुण आते हैं। जिस प्रकार का शिशु का नाम होता है, उनके मन पर वैसा ही असर पड़ता है और वह उसी के अनुरूप चलने लगता है। यदि शिशु के नाम में महान भावना होगी, तो शिशु में भाग्य और यश का उदय होगा, इसलिए आपने देखा होगा कि कुछ लोग अपने बालकों या बालिकाओं का नाम भगवान के नाम पर रखते हैं, ताकि उनके भीतर भी उन्हीं के विचार एवं गुण आएं। नामकरण संस्कार इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि शिशु जिस भी नक्षत्र एवं ग्रह की चाल में जन्म लेता है, उसी के आधार पर ही उसका नाम रखा जाता है और यह केवल ज्योतिषी या वैदिक, ब्राह्मण और पंडित द्वारा ही संभव है। इसलिए नामकरण संस्कार को वैदिक विधि द्वारा ही संपन्न किया जाता है।
 

नामकरण संस्कार कब करना चाहिए?


पारस्कर गृह्यसूत्र में बताया गया है कि नामकरण संस्कार 11वें दिन किया जाना चाहिए। शंख स्मृति में भी नामकरण संस्कार को लेकर यही कहा गया है कि, यह संस्कार 11वें दिन ही करना चाहिए। यदि किसी कारणवश नामकरण संस्कार में देरी आती है, तो शिशु का नामकरण 18वें, 19वें  दिन या फिर 100 वें  दिन में करना चाहिए। इसके साथ ही शुभ मुहूर्त निकाल कर भी नामकरण संस्कार किया जा सकता है।
 

क्यों रखा जाता है जन्म का नाम गुप्त?


हमारे ऋषि मुनियों ने जन्म का नाम यानि कि नक्षिका नाम (नाम राशि के नाम) को लेकर कहा है, कि यह नाम केवल उपनयन संस्कार तक ही उपयुक्त होना चाहिए और जिसकी जानकारी केवल माता-पिता को ही होनी चाहिए। इसके साथ ही शिशु को पुकारने का नाम दूसरा होना चाहिए और जन्म के नाम को गुप्त रखा जाना चाहिए। क्योंकि शास्त्रों में कहा गया है कि राशि के नाम के गुप्त रखकर शत्रु के अनुचित कार्यों से रक्षा की जा सकती है, अन्यथा वह जन्म नाम का फायदा उठाकर शिशु को हानि पहुंचा सकते हैं। इसलिए आपने देखा होगा कि आपका या फिर आपके आसपास हर एक व्यक्ति के दो नाम जरूर होते हैं।

यदि आप भी नामकरण संस्कार को वैदिक विधि द्वारा संपन्न करवाना चाहते हैं या फिर नामकरण संस्कार के लिए ज्योतिष की सलाह लेना चाहते हैं, तो आप हमारे ज्योतिषाचार्यों से संपर्क कर सकते हैं। 
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