ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुक्र ग्रह बहुत फलकारी होता है ।जिस राशि के जातकों पर इसका अच्छा प्रभाव होता है उस राशि के जातकों जीवन में हर तरह की खुशियाँ आती है। वहीं दूसरी ओर जिस राशि के जातकों के जीवन में शुक्र का प्रभाव कमजोर होता है। उनके जीवन में अनेक तरह की परेशानी आती है। शुक्र ग्रह तुला राशि का स्वामी होता है ।
ज्योतिष के अनुसार गोचर का महत्व समय और ज्योतिष के अनुसार बहुत है ।जिसका प्रभाव हमारे जीवन में देखने को मिलता है ।
गोचर शब्द की उत्पत्ति 'गम्'धातु से मिलकर बना है जिसका अर्थ है चलने वाला ' चर ' शब्द से तात्पर्य गतिमय या चलने वाला होता है ।जैसा की हम सब अवगत है कि ब्रह्माण्ड में स्थित सभी ग्रह अपनी-अपनी धुरी पर अपनी गति से निरंतर भ्रमण करते रहते हैं। इस भ्रमण के बीच वे एक राशि से दूसरे राशि में प्रवेश करते हैं "ग्रहों के इस प्रकार राशि परिवर्तन करने के उपरान्त दूसरी राशि में उनकी स्थिति को ही 'गोचर' कहा जाता है।"। प्रत्येक ग्रह का जातक की जन्मराशि से विभिन्न भावों में 'गोचर' भावानुसार शुभ-अशुभ फल देता है।
भ्रमण काल-
सूर्य,शुक्र,बुध का भ्रमण काल 1 माह, चंद्र का सवा दो दिन, मंगल का 57 दिन, गुरु का 1 वर्ष,राहु-केतु का डेढ़ वर्ष व शनि का भ्रमण काल ढाई वर्ष होता है अर्थात् ये ग्रह इतने समय तक एक ही राशि में रहते हैं तत्पश्चात् ये अपनी राशि बदल लेते हैं।
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विभिन्न ग्रहों का गोचर अनुसार फल-
सूर्य- सूर्य जन्मकालीन राशि से 3,6,10 और 11 वें भाव में शुभ फल देता है। शेष भावों में सूर्य का फल अशुभ देता है।
चंद्र- चंद्र जन्मकालीन राशि से 1, 3, 6, 7, 10 व 11 भाव में शुभ तथा 4,8, 12 वें भाव में अशुभ फल देता है।
मंगल- मंगल जन्मकालीन राशि से 3 ,6,11 भाव में शुभ फल देता है। शेष भावों में अशुभ फल देता है।
बुध- बुध जन्मकालीन राशि से 2,4,6,8,10 और 11 वें भाव में शुभ फल देता है। शेष भावों में अशुभ फल देता है।
गुरु-गुरु जन्मकालीन राशि से 2,5,7,9 और 11 वें भाव में शुभ फल देता है। शेष भावों में अशुभ फल देता है।
शुक्र-शुक्र जन्मकालीन राशि से 1,2,3, 4,5, 8,9,11 और 12 वें भाव में शुभ फल देता है। शेष भावों में अशुभ फल देता है।
शनि-शनि जन्मकालीन राशि से 3,6,11 भाव में शुभ फल देता है। शेष भावों में अशुभ फल देता है।
राहु-राहु जन्मकालीन राशि से 3 ,6,11 वें भाव में शुभ फल देता है। शेष भावों में अशुभ फल देता है ।
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