- ज्योतिषशास्त्र के अनुसार दूसरे विवाह हेतु सप्तम, नवम तथा सप्तम से छठे अर्थात द्वादश भावों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। यदि लग्न, सप्तम स्थान और चंद्र लग्न द्विस्वभाव राशि में हों, तो जातक के दो विवाह होते हैं।
- इसी प्रकार लग्नेश, सप्तमेश तथा शुक्र द्विस्वभाव राशि में हों, तो जातक के दो विवाह होते हैं।
- यदि सप्तम और अष्टम में पापी ग्रहों का निवास हो और मंगल द्वादश स्थान में विराजित हो तो जातक के दो विवाह होते हैं।
- सप्तम स्थान का कारक यदि पापी ग्रह से युक्त अथवा नीच नवांश अथवा शत्रु नवांश अथवा अष्टमेश के नवांश में हो तो भी जातक के दो विवाह होते हैं।
- यदि सप्तमेश और एकादशेश भाव साथ में हों अथवा एक दूसरे पर दृष्टि रखते हों, तो जातक के कई विवाह होते हैं। प्रेम संबंधों का योग पंचम भाव से देखा जाता है।
- लग्नेश एवं पंचमेश का संबंध (चतुर्विध) प्रेम संबंध का द्योतक होता है।
- पंचमेश तथा सप्तमेश की एकादश भाव में युति भी प्रेम संबंध को बढ़ावा देती है।
- पंचमेश भाव में शुभकर्तरी तथा सप्तम भाव का पापी प्रभाव में होना एवं लग्नेश की पंचम भाव पर दृष्टि की ग्रह स्थिति प्रेम संबंध को बढ़ावा देती है।
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