भक्ति और आस्था के एक धागे में पिरोए हुए मोतियों की तरह लोग सुव्यवस्था और शांति के प्रतीक बन जाते हैं। उनको नियम और कायदे में रखने के लिए किसी भी प्रकार की कानून व्यवस्था की आवश्यकता नहीं पड़ती है। यह तथ्य अपने आप में ही एक आश्चर्य पैदा करने वाला होता है।कुंभ मेला एक ऐसा आयोजन होता है जिसमें ना तो कोई सभा होती है ना ही कोई समिति ना ही कोई संचालक और जिसमें बच्चों से लेकर के वृद्ध तक हर उम्र के लोग एक साथ आते हैं। वह कई दिनों तक एक शहर में रहते हैं। धार्मिक अनुष्ठानों का हिस्सा बनते हैं। नदी में स्नान करते हैं और शांतिपूर्ण ढंग से अपने अपने घरों को वापस जाते हैं। भक्तों की संख्या तो सैकड़ों में होती है फिर भी इतनी शांति इतनी प्रीति, आनंद, निष्ठा, उत्साह सेवा करने का भाव, श्रद्धा और धर्म के प्रति निष्ठा देखने को मिलती है। यहां पर रहने वाले लोग किसी भी तरह के कष्ट को झेलने के लिए तैयार रहते हैं। उनकी आस्था उनको सदैव हितकारी कार्य करने के लिए प्रेरित करती है तथा वे अपने इष्ट को याद करते हुए अपने आप को सौभाग्य वान प्रतीत करते हैं।
कुंभ जैसा महापर्व अपने आप में कोई साधारण पर्व नहीं होता है। यह भक्ति, ज्ञान, वैराग्य और आस्था का प्रतीक है। कुंभ जैसे अध्यात्मिक पर्वों में माहौल बड़ा ही पवित्र और अनुपम होता है। यहां पर वेद मंत्रों के उच्चारणों की आवाज सुनाई देती है। पौराणिक महाकाव्य तथा प्रार्थना से पूरा वातावरण शुद्ध और दिव्य प्रतीत होता है। संत और साधु हर जगह आप को उपदेश देते नजर आएंगे। हर जगह प्रार्थनाओं की गूंज से वातावरण दिव्यतम प्रतीत होता है। इस पर्व में धर्म मुखिया हिस्सा लेते हैं।
यह पर्व अत्यंत गरिमामय होता है। यहां पर गरीब से गरीब असहाय लोगों के रहने, खाने और भरण-पोषण की व्यवस्था भी ढंग से की जाती है। इस पर्व के दौरान नदी भक्तों की मां की तरह होती है और सारे भक्त उसके बच्चे। इस पर्व के दौरान कई तरह के दान भी किए जाते हैं। जैसे की गुप्त दान, पितरों के लिए दान, अन्न दान, गोदान आदि।
इसी प्रकार इस साल भी कुंभ मेले का आयोजन हो रहा है। यह कुंभ मेला 12 वर्ष बाद मनाया जा रहा है तथा इसका आयोजन इस बार हरिद्वार में गंगा के दिव्य तटों पर किया जा रहा है।
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कुम्भ से जुड़ी पौराणिक कथा
कुंभ से जुड़ी सबसे प्रचलित और मान्यता प्राप्त कथा अमृत मंथन से जुड़ी हुई कथा है। इस कथा के अनुसार एक बार राक्षस और देवताओं में समुद्र के मंथन तथा उससे निकलने वाली चीजों को आपस में बांटने का निर्णय किया गया। उनके बीच इस बंटवारे को लेकर कई मतभेद हो गए। इसी मंथन में एक सबसे मूल्यवान चीज निकली जो की था अमृत कलश। उसे पाने के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच हड़कंप मच गया। दोनों ने इसे प्राप्त करने की इच्छा प्रकट की क्योंकि उसे प्राप्त करने वाला व्यक्ति अमर हो जाता है।
इसे प्राप्त करने के लिए देवता और राक्षसों के बीच अंततः युद्ध प्रारंभ हो गया। इसके बाद भगवान विष्णु ने मोहिनी नाम का एक अवतार धरा जिसके बाद उन्होंने इस अमृत पात्र को राक्षसों से दूर किया। भगवान विष्णु ने वह पात्र अपने वाहन गरुड़ देव को दे दिया और जब राक्षस गरुण देव से यह पात्र छीनने लगे तो उसमें से चार बूंदे पृथ्वी पर अलग-अलग स्थानों पर गिर गईं। यह बूंदें प्रयागराज, नाशिक, हरिद्वार और उज्जैन में जा गिरीं। तभी से हर 12 वर्षों के अंतराल पर इन स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता आ रहा है।
कुंभ के दौरान किए जाने वाले दान
जब भी आप कुंभ के दौरान नदी में स्नान करने के लिए जाएं तो सबसे पहले उस नदी को अपना प्रणाम अर्पित करें। उसके बाद पुष्प अर्पित करें तथा अपनी इच्छाशक्ति अनुसार मुद्रा डालकर उसके बाद ही स्थान करें। इसके बाद किसी पंडित या ब्राह्मण को वस्त्र आदि का दान भी अवश्य करें। ऐसी मान्यता है कि हर 12 वर्ष में होने वाले इस मेले के दौरान हमें पिछले 12 वर्षों में कमाई गई संपत्ति का दान करना चाहिए।
कुंभ का ज्योतिषीय दृष्टिकोण
माना जाता है कि यदि बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करता है एवं सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है तो कुंभ का पर्व हरिद्वार में आयोजित किया जाता है। ऐसी ही अन्य गणना के अनुसार जब सूर्य मकर राशि एवं वृष राशि में बृहस्पति का प्रवेश होता है तो कुंभ पर्व प्रयाग में आयोजित होता है। ठीक इसी प्रकार सिंह राशि में बृहस्पति के प्रवेश होने पर इसका आयोजन नासिक में किया जाता है और यदि बृहस्पति सिंह राशि एवं सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है तो यह पर उज्जैन में आयोजित होता है।
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