जानिये कितनी तरह के होते हैं योग और योग का इतिहास
योग साधना की परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही है. पुरातन साक्ष्यों द्वारा योग के महत्व को सहजता के द्वारा जाना जा सकता है. प्राचीन भारत में योग के चिन्ह हर ओर मौजूद दिखाई देते हैं. योग की उपस्थिति लोक परंपराओं, सिंधु घाटी सभ्यता, वैदिक और उपनिषद, बौद्ध और जैन परंपराओं, दर्शन, महाभारत और रामायण के महाकाव्य, शैव, वैष्णव और तांत्रिक परंपराओं में भी बहुलता के साथ उपस्थित है. वैदिक काल में सूर्य को सर्वाधिक महत्व दिया गया था. इसी में सूर्य नमस्कार की प्रथा का आविष्कार भी हुआ.
सनातन परंपरा में प्राणायाम दैनिक अनुष्ठान का एक हिस्सा था. पूर्व-वैदिक काल से योग का अभ्यास किया जा रहा था, महान ऋषि महर्षि पतंजलि ने अपने योग सूत्रों के माध्यम से योग की तत्कालीन मौजूदा प्रथाओं, इसके अर्थ और इससे संबंधित ज्ञान को व्यवस्थित और संहिताबद्ध किया. पतंजलि के बाद, कई ऋषियों और योग गुरुओं ने अपने साहित्य के माध्यम से योग के संरक्षण और विकास के लिए बहुत योगदान दिया. योग के अस्तित्व के ऐतिहासिक प्रमाण पूर्व-वैदिक काल 2700 ईसा पूर्व और उसके बाद पतंजलि के काल तक देखे गए. इस अवधि के दौरान योग प्रथाओं और संबंधित साहित्य के बारे में जानकारी प्राप्त करने वाले मुख्य स्रोत वेद, उपनिषद, स्मृति, बौद्ध धर्म की शिक्षाएं, जैन धर्म, पाणिनी, महाकाव्य और पुराणों में उपलब्ध रहे हैं.
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योग के प्रकार
हठ योग
संस्कृत शब्द “हठ” योग की सभी शारीरिक मुद्राओं के लिए एक बहुउपयोगी शब्द है. हठ योग सभी शैलियों अष्टांग, अयंगर, आदि को दर्शाता है. यह एक शारीरिक अभ्यास पर आधारित है. इसमें षटकर्म, आसन, मुद्रा, प्राणायाम,प्रत्याहार, ध्यान और समाधि ये हठ योग के सात अंग माने गर हैं इस योग के माध्य्म द्वारा कूंडलिनी शक्ति जागर संभव हो पाता है.
कर्म योग
कर्म में रहकर जीवन कौ जीना ही कर्म योग की अवहारणा है. यह योग दूसरों की भलाई के लिए किया जाने वाला भाव भी है. निस्वार्थ कर्म के माध्यम से सेवा का मार्ग है. हिंदू मठों या आश्रमों में एक परंपरा के रुप में मौजूद है. कर्म योग की अवधारण भगवान ने गीता में भी मौजूद है
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भक्ति योग
भक्ति अनुष्ठानों के माध्यम से परमात्मा की अभिव्यक्ति और प्रेम का मार्ग प्रतिष्ठित करना है. इस मार्ग के रूपों में नियमित प्रार्थना, जप, कीर्तन, गायन, नृत्य, समारोह और उत्सव शामिल होते हैं. 14वीं शताब्दी से 15वीं शताब्दी का कल भक्ति का ही काल रहा है जब भक्ति योग चरम पर मौजूद रहा. सुरदास हों या कृष्ण दास अपने गीत में भक्ति योग को मुख्य स्थान दिया.
ज्ञान योग
यह बुद्धि और ज्ञान का मार्ग है, और इसमें पवित्र ग्रंथों का अध्ययन, बौद्धिक चर्चा, दार्शनिक चर्चा और आत्मनिरीक्षण शामिल होता है. सुकरात एक ज्ञान योगी थे, जैसा कि डेविड फ्रॉली और रवि रवींद्र जैसे आधुनिक योग विद्वान हैं.
राज योग
इसे राजसिक एवं शाही योग के रूप में भी जाना जाता है, व्यक्तिगत ज्ञान की ओर यात्रा को दर्शाता करता है। इस पथ में योग के आठ अंगों को एकीकृत करते हुए तीन मुख्य योग प्रकारों - कर्म, भक्ति और ज्ञान - को संतुलित करना शामिल है
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