वरूथिनी एकादशी सबसे फलदायी एकादशी होती है । जिसे करने से व्यक्ति को तप करने के बराबर फल मिलता है ।इस एकादशी में भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है ।
इस व्रत को करने की दो कथा प्रचलित है जिनमें एक भगवान शिव से जुड़ी है तो दूसरी राजा मान्धाता से जुड़ी है ।
आज हम जानेगें क्या वरूथिनी एकादशी की करने के पीछे की कथा जिससे अब तक है आप अनजान
वरुथिनी एकादशी कथा
पौराणिक कथाओं के मुताबिक एक बार जब भगवान शिव ने कोध्रित में ब्रह्मा जी का पांचवां सर काट दिया था, तो उन्हें इसका श्राप लग गया था। इस श्राप से मुक्ति के लिए भगवान शिव ने वरुथिनी एकादशी का व्रत किया था। वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से भगवान शिव श्राप और पाप से मुक्त हो गए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस एक दिन व्रत रखने का फल कई वर्षों की तपस्या के समान है।
वहीं दूसरी कथा है
.
प्राचीन समय में नर्मदा नदी के किनारे मान्धाता नाम के राजा रहते थे। राजा एक बार तपस्या में लीन थे, तभी एक भालू ने उनका पैर चबा लिया और राजा को जंगल की ओर खींचकर ले गया।
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तब राजा ने विष्णु भगवान से प्रार्थना की। विष्णु भगवान ने अपने चक्र से भालू को मार डाला।
राजा का पैर भालू ने नोचकर खा लिया था। राजा को दुखी देखकर विष्णु भगवान ने कहा कि ये तुम्हारे पूर्व जन्म का पाप है, जिसकी सजा तुम्हें इस जन्म में भुगतनी पड़ रही है।
राजा ने इससे मुक्ति पाने का उपाय पूछा तो विष्णुजी ने कहा कि राजन, तुम मेरी वाराह अवतार मूर्ति की पूजा और वरुथिनी एकादशी का व्रत करो।
इससे तुम्हारे पाप कट जाएंगे और व्रत के प्रभाव से दोबारा अंगों वाले हो जाओगे।
इसके बाद राजा ने वरुथिनी एकादशी का व्रत धारण किया तो उनका पैर फिर से ठीक हो गया ।
वरुथिनी एकादशी का व्रत करने वालों को दशमी के दिन निम्नलिखित वस्तुओं का त्याग करना चाहिए।
1. कांसे के बर्तन में भोजन करना
2. मांस
3. मसूर की दाल
4. चने का शाक,
5. कोदों का शाक
6. मधु (शहद)
7. दूसरे का अंत
8. दूसरी बार भोजन करना
9. स्त्री प्रसंग।
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