मान्यताओं के अनुसार देवी विन्ध्यवासिनी ने ही महाकाली का रूप रक्तबीज नाम के असुर का वध करने के लिए लिया था। कहते हैं की इससे पहले जब वह दुर्गा स्वरुप में रक्तबीज का संहार करने प्रकट हुई थी तब जितना ही रक्त धरती पर गिरता रक्तबीज उतना ही जीवित हो उठता। परन्तु जब वह महाकाली स्वरुप में प्रकट हुई तो क्रोध से उनका शरीर काला पड़ गया जिसके बाद उन्होंने अपनी जिव्हा से रक्तबीज की जिव्हा पर रक्त का पान कर उसका संहार कर दिया। जिस स्वरुप में देवी ने उसका वध किया था , आज भक्तों को उसी स्वरुप में माता के दर्शन प्राप्त होते हैं।
अक्षय तृतीया पर देवी विंध्यवासिनी के श्रृंगार पूजा से जीवन की समस्याएं होंगी दूर, मिलेगा धन लाभ का आशीर्वाद : 26-अप्रैल-2020
विंध्याचल महाशक्तिपीठ है, दूसरे शक्ति का प्रस्फुटन करने वाली ऊर्जा को लेकर मंडल के सुदूर दक्षिण में विंध्याचल नाम से नवीन शक्तिपीठ के रूप में परियोजनाएं भी चलती हैं। इनकी आराधना करने वाले भक्त को किसी प्रकार का भय नहीं रहता। वह सर्वश्रेष्ठ बन जाता है तथा उनकी कृपा से व्यक्ति का जीवन सुखमय हो जाता है। यहाँ देवी के चार श्रृंगार किए जाते हैं। प्रत्येक श्रृंगार का अपना विशेष महत्व है। इसमें देवी के विभिन्न रूपों का आवाहन किया जाता है।
भगवती काली दसमहाविद्याओं में प्रथम स्थान पर हैं। उन्हें आद्य महाविद्या भी कहा जाता है। इनकी साधना हर प्रकार की मनोकामना पूर्ति व मोक्ष की प्राप्ति के लिए की जाती है। इनकी आराधना कभी भी किसी व्यक्ति का बुरा सोचकर नहीं की जाती है। महाकाली संहार की देवी के रूप में भी जानी जाती हैं। इनका स्वरूप भयावय जरूर है परन्तु यह भक्तों की इच्छाओं को पूर्ण करने वाली दयामयी हैं।
यह भी पढ़े :-
देवी विंध्यवासिनी करती हैं भक्तों के सभी कष्ट दूर
देवी की द्वादश विग्रह तथा स्थान
अक्षय तृतीया का पर्व क्यों मनाया जाता है ?