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विंध्य शैल की खोह में स्थित है महाकाली का मंदिर

MyJyotish Expert Updated 24 Apr 2020 04:04 PM IST
Mahakali Temple Puja: The temple of Mahakali is located in the lair of Vindhya rock.
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माँ विन्ध्यवासिनी का मंदिर विंध्याचल धाम से तीन किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर के दक्षिण पश्चिमी कोण में विंध्य शैल की खोह में स्थित है महाकाली का मंदिर। इस मंदिर के परिसर में महादेव का बहुत सुन्दर मंदिर भी है। इस मंदिर के पीछे आगाध कूप है जिसका शीतल जल बहुत ही मधुर तथा गुणकारी माना जाता है। माँ विंध्यवासिनी का आशीर्वाद बहुत ही महिमाकारी माना जाता है। उनकी पूजा से बड़ी से बड़ी विपदाएं भी दूर हो जाती हैं। तथा महाकाली स्वरूप स्वयं नकारात्मक ऊर्जाओं से अपने भक्तों की रक्षा करता है।

मान्यताओं के अनुसार देवी विन्ध्यवासिनी ने ही महाकाली का रूप रक्तबीज नाम के असुर का वध करने के लिए लिया था। कहते हैं की इससे पहले जब वह दुर्गा स्वरुप में रक्तबीज का संहार करने प्रकट हुई थी तब जितना ही रक्त धरती पर गिरता रक्तबीज उतना ही जीवित हो उठता। परन्तु जब वह महाकाली स्वरुप में प्रकट हुई तो क्रोध से उनका शरीर काला पड़ गया जिसके बाद उन्होंने अपनी जिव्हा से रक्तबीज की जिव्हा पर रक्त का पान कर उसका संहार कर दिया। जिस स्वरुप में देवी ने उसका वध किया था , आज भक्तों को उसी स्वरुप में माता के दर्शन प्राप्त होते हैं।

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विंध्याचल महाशक्तिपीठ है, दूसरे शक्ति का प्रस्फुटन करने वाली ऊर्जा को लेकर मंडल के सुदूर दक्षिण में विंध्याचल नाम से नवीन शक्तिपीठ के रूप में परियोजनाएं भी चलती हैं। इनकी आराधना करने वाले भक्त को किसी प्रकार का भय नहीं रहता। वह सर्वश्रेष्ठ बन जाता है तथा उनकी कृपा से व्यक्ति का जीवन सुखमय हो जाता है। यहाँ देवी के चार श्रृंगार किए जाते हैं। प्रत्येक श्रृंगार का अपना विशेष महत्व है। इसमें देवी के विभिन्न रूपों का आवाहन किया जाता है।

भगवती काली दसमहाविद्याओं में प्रथम स्थान पर हैं। उन्हें आद्य महाविद्या भी कहा जाता है। इनकी साधना हर प्रकार की मनोकामना पूर्ति व मोक्ष की प्राप्ति के लिए की जाती है। इनकी आराधना कभी भी किसी व्यक्ति का बुरा सोचकर नहीं की जाती है। महाकाली संहार की देवी के रूप में भी जानी जाती हैं। इनका स्वरूप  भयावय जरूर है परन्तु यह भक्तों की इच्छाओं को पूर्ण करने वाली दयामयी हैं।

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