प्रत्येक सूर्य ग्रहण तब होता है जब चन्द्रमा पृथ्वी और सूर्य के मध्य से होकर गुजरता है , जिसके कारण पृथ्वी से देखने पर सूर्य का आकर आंशिक या पूर्ण रूप से ढका दिखाई देता है। सूर्य ग्रह से जुड़ा राहु और केतु ग्रह का आध्यात्मिक मान्य एक प्रचलित कथा से प्राप्त होता है।पौराणिक ग्रंथो के अनुसार सूर्य पर ग्रहण इन ग्रहों के कारण ही लगता है।
सूर्य ग्रहण के अवसर पर कराएं सामूहिक महामृत्युंजय मंत्रों का जाप - महामृत्युंजय मंदिर , वाराणसी
सूर्य ग्रहण का आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक दोनों ही क्षेत्रों में बहुत महत्व माना जाता है। मत्सय पुराण की एक कथा के अनुसार राहु और केतु का सूर्य ग्रहण से एक महत्वपूर्ण सम्बन्ध है। कहा जाता है की स्वरभानु नामक राक्षस जब अमृत का पान करने हेतु चंद्र एवं सूर्य ग्रह के बीच आकर छुप गया था तब समस्त जग में कोलाहल मच उठा था।
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जब यह बात देवताओं को पता चली तो उन्होंने इसकी सुचना भगवान विष्णु को प्रदान की ,यह सुनते ही विष्णु जी ने अपने चक्र से उस राक्षस का सिर धड़ से अलग कर दिया। जो 2 भागों में विभाजित हो कर राहु और केतु के नाम से जाने जातें है। ऐसा इसलिए हुआ क्यूंकि प्रभु के सिर को धड़ से अलग करने से पूर्व ही राक्षस अमृत का पान कर चूका था। इसलिए तभी से जब - जब चन्द्रमा और सूर्य एक दूसरे के निकट आतें है तो राहु और केतु के प्रभाव से ग्रहण की स्थिति उत्पन्न होती है।
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सूर्य ग्रहण के समय मंत्रों का जाप अवश्य करना चाहिए , इससे ग्रहण काल के बुरे प्रभावों का असर समाप्त हो जाता है। इस समय खाने पीने की चीज़ों में तुसली का पत्ता दाल देना चाहिए जिससे उन में अशुद्धि नहीं होती। ग्रहण के सभी नियम बुजुर्ग , रोगी एवं बच्चों पर लागु नहीं होतें है। इस समय गर्भवती महिलाओं को अधिक ध्यान रखना होता है। ग्रहण के बाद स्नान करना जरुरी माना जाता है , इससे ग्रहण के शरीर शुद्ध हो जाता है।
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