काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास:
धर्मग्रंथों में महाभारत काल से ही इस मंदिर का उल्लेख किया गया है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में स्थित भगवान शिव का यह मंदिर हिंदूओं के प्राचीन मंदिरों में से एक है, जोकि गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है। इस मंदिर की स्थापना 11 वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने करवाई थी और वर्ष 1194 में मुहम्मद गौरी ने ही इसे तुड़वा दिया था। जिसे एक बार फिर बनाया गया लेकिन वर्ष 1447 में इसे जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने तुड़वा दिया।
फिर साल 1585 में राजा टोडरमल की सहायता से पंडित नारायण भट्ट ने इसे बनाया गया था लेकिन वर्ष 1632 में शाहजंहा ने इसे तुड़वाने के लिए सेना की एक टुकड़ी भेज दी। लेकिन हिंदूओं के प्रतिरोध के कारण सेना अपने मकसद में कामयाब न हो पाई। इतना ही नहीं 18 अप्रैल 1669 में औरंगजेब ने इस मंदिर को ध्वस्त कराने के आदेश दिए थे। साथ ही ब्राह्मणों को मुसलमान बनाने का आदेश दिया था। आने वाले समय में काशी मंदिर पर ईस्ट इंडिया का राज हो गया, जिस कारण मंदिर का निर्माण रोक दिया गया। फिर साल 1809 में काशी के हिंदूओं द्वारा मंदिर तोड़कर बनाई गई ज्ञानवापी मस्जिद पर कब्जा कर लिया गया।
सपने में दिए थे भगवान शिव ने दर्शन:
ऐसी मान्यता है कि एक भक्त को भगवान शिव ने सपने में दर्शन देकर कहा था कि गंगा स्नान के बाद उसे दो शिवलिंग मिलेंगे और जब वो उन दोनों शिवलिंगों को जोड़कर उन्हें स्थापित करेगा तो शिव और शक्ति के दिव्य शिवलिंग की स्थापना होगी और तभी से भगवान शिव यहां मां पार्वती के साथ विराजमान हैं|
विश्वनाथ मंदिर की धारणा:
हिन्दू धर्म में कहते हैं कि विनाश पर भी इसका लोप नहीं होगा। ऐसा कहा जाता है कि उस समय भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेगे और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार देगे। इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने की कामना से तपस्या करके आशुतोष को प्रसन्न किया था और फिर उनके शयन करने पर उनके नाभि-कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए, जिन्होने सारे संसार की रचना की। अगस्त्य मुनि ने भी विश्वेश्वर की बड़ी आराधना की थी।
काशी विश्वनाथ मंदिर के बारे में कुछ रहस्मयी तथ्य..
इस मंदिर में शिव लिंग काले पत्थर का बना हुआ है। इसके अलावा दक्षिण की तरफ़ तीन लिंग हैं, जिन्हें मिला कर नीलकंठेश्वर कहा जाता है।
वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण के काशी कांड सहित पुराणों में किया गया है।
गंगा किनारे बसा यह शहर कई बार तबाही और निर्माण का साक्षी बना है, जिसका असर काशीनाथ मंदिर पर भी पड़ा।
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काशी असल में संस्कृत शब्द 'कास' से बना था जिसका अर्थ है 'चमक'। सदियों से कई हमलों और विपत्तियों के बाद भी शहर की सुंदरता बरकरार है।
रानी अहिल्या द्वारा मंदिर का जीर्णोद्धार कराने के बाद इंदौर के महाराजा रणजीत सिंह ने मंदिर के टावर पर सोना लगाने का कार्य किया।
मंदिर और उसके पास एक मस्जिद के बीच में एक 'वेल ऑफ विजडम' स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि औरंगजेब द्वारा मंदिर को नष्ट करने की योजना की खबर फैलते ही शिव की मूर्ति को एक कुएं में छिपा दी गई थी।
औरंगज़ेब मंदिर को तोड़ कर उसके जगह पर मस्जिद बनाना चाहता था, आज भी मंदिर की पश्चिमी दीवार पर मस्जिद के लिए की गई खूबसूरत नक्काशी को साफ़ देखा जा सकता है।
मंदिर को कब और कैसे खोला जाता है?
यह मंदिर रोज सुबह 2.30 बजे मंगल आरती के लिए खोला जाता है। आरती सुबह 3 सो 4 बजे तक होती है। भक्त टिक्ट लेकर इस आरती में भाग लेते है। भक्त 4 बजे से सुबह 11 बजे तक मंदिर के दर्शन कर सकते हैं। 11.30 बजे से दोपहर 12 बजे तक भोग का आयोजन होता है। 12 बजे से शाम के 7 बजे तक दुबारा इस मंदिर में दर्शन की कर सकते है।
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