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Sankashti Chaturthi Vrat: ज्येष्ठ मास की पहली संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत

MyJyotish Expert Updated 18 May 2022 11:59 AM IST
ज्येष्ठ मास की पहली संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत
ज्येष्ठ मास की पहली संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत - फोटो : google photo
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ज्येष्ठ मास की पहली संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत


संकष्टी चतुर्थी प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन मनाई जाती है जिसे दक्षिण भारतीय राज्यों में संकटहारा चतुर्थी भी कहा जाता है, हिंदुओं के लिए एक शुभ त्योहार है, जिसे भगवान गणेश के सम्मान में मनाया जाता है. संकष्टी चतुर्थी का व्रत गुरुवार 19 मई 2022 को रखा जाएगा. 

संकष्टी चतुर्थी मुहूर्त 
हिंदू पंचांग अनुसार कृष्ण पक्ष के चौथे दिन पर इस पर्व को मनाया जाता है. इसके अलावा जब संकष्टी चतुर्थी मंगलवार को पड़ती है, तो यह अंगारकी चतुर्थी के रूप में मनाई जाती है. सभी संकष्टी चतुर्थी के दिनों का समय अत्यंत शुभ एवं प्रभावशाली समय होता है. संकष्टी चतुर्थी तिथि आरंभ का समय: 18 मई, 23:37 से होगा और 19 मई, रात 20:24 तक चतुर्थी तिथि समाप्त होगी. 

संकष्टी चतुर्थी का उत्सव भारत के उत्तरी और दक्षिणी दोनों राज्यों में विशेष रुप से प्रचलित है. महाराष्ट्र राज्य में, उत्सव और भी विस्तृत और भव्य हैं. 'संकष्टी' शब्द का संस्कृत मूल है और इसका अर्थ है 'कठिन समय के दौरान उद्धार' जबकि 'चतुर्थी' का अर्थ है चौथा दिन या भगवान श्री गणेश का दिन. इसलिए इस शुभ दिन पर भक्त जीवन में सभी बाधाओं को दूर करने और हर कठिन परिस्थिति में विजय प्राप्त करने के लिए भगवान श्री गणेश की पूजा करते हैं.

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संकष्टी चतुर्थी व्रत पूजा विधि 
संकष्टी चतुर्थी के दिन, भक्त जल्दी उठते हैं और भगवान गणेश की पूजा करते हैं. उपवास भी रखा जाता है, कुछ लोग आंशिक उपवास भी रख सकते हैं. इस व्रत का पालन करने वाला केवल फल, सब्जियां और पौधों की जड़ों को ही खा सकता है. इस दिन मुख्य भारतीय आहार में मूंगफली, आलू और साबूदाना खिचड़ी शामिल हैं.

संकष्टी पूजा शाम को चंद्रमा को देखने के बाद की जाती है. भगवान गणेश की मूर्ति को दूर्वा घास और ताजे फूलों से सजाया गया है. इस दौरान दीपक भी जलाया जाता है. अन्य सामान्य पूजा अनुष्ठान जैसे धूप-दीप जलाना और वैदिक मंत्रों का पाठ भी किया जाता है. इसके बाद भक्त व्रत कथा का पाठ करते हैं. संध्या समय को भगवान गणेश की पूजा करने और चंद्रमा के पूजन करने के बाद ही व्रत खोला जाता है.

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मोदक और भगवान गणेश के अन्य पसंदीदा खाने से युक्त विशेष 'नैवेद्य' प्रसाद के रूप में तैयार किया जाता है. इसके बाद एक 'आरती' होती है और बाद में सभी भक्तों के बीच प्रसाद वितरित किया जाता है.
संकष्टी चतुर्थी के दिन, विशेष पूजा अनुष्ठान भी चंद्रमा या चंद्र भगवान को समर्पित होते हैं. इसमें चंद्रमा की दिशा में जल, चंदन का लेप, पवित्र चावल और फूल का छिड़काव करना शामिल है.

इस दिन कुछ नाम रखने के लिए 'गणेश अष्टोत्र', 'संकष्टनाशन स्तोत्र' और 'वक्रथुंड महाकाया' का पाठ करना शुभ होता है. वास्तव में भगवान गणेश को समर्पित किसी भी अन्य वैदिक मंत्रों का जाप किया जा सकता है. भगवान श्री गणेश को समृद्धि, सौभाग्य और संकटहर्ता के देवता के रूप में पूजा जाता है. अत: भक्त इस दिन श्री गणेश पूजन द्वारा भगवान का आशीर्वाद पाते हैं. 

संकष्टी चतुर्थी का महत्व:
संकष्टी चतुर्थी के पावन दिन चंद्रमा पूजन का विशेष महत्व है. भगवान गणेश के उत्साही भक्तों का मानना है कि विशेष रूप से अंगारकी चतुर्थी के दिन अपने देवता की भक्ति के साथ प्रार्थना करने से उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं निःसंतान दंपत्ति भी संतान की प्राप्ति के लिए संकष्टी चतुर्थी का व्रत करते हैं.
 

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