मान्यताओं के अनुसार वर्ष 1811 श्रवण शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन असोटा गांव के एक किसान को हल जोतते समय दो मूर्तियां प्राप्त हुई। उसकी पत्नी जब उसके लिए भोजन लेकर आयी तो उसने यह बात उसे बताई। दोनों ने मिलकर मूर्ति को साफ़ करके उनकी पूजा की। जल्दी ही यह बात पूरे गांव को पता चल गई। मुखिया को समाचार मिलने वाली रात को बालाजी द्वारा स्वप्न में यह मूर्तियां सालासर भेज दिए जाने का आदेश प्राप्त हुआ।
उसी रात सालासर के मोहनदास जी महाराज के सपने में भी बालाजी प्रकट होकर उन्हें असोटा की मूर्ति के बारें में अवगत कराते हैं । मोहनदास जी ने सुबह होतें ही संदेशा भेजकर मूर्ति देने की बात कही। मुखिया को बहुत आश्चर्य हुआ क्यूंकि मोहनदास जी असोटा के ना हो कर भी मूर्तियों के बारें में बहुत कुछ जानते थे। वह समझ गए की इस मूर्ति के पीछे विशेष चमत्कारी शक्ति का आशीर्वाद है। उन्होंने तुरंत ही मूर्तियों को सालासर भेजवा दिया। तभी से यह जगह सालासर धाम से प्रसिद्ध हो गई।
हनुमान जी के साथ -साथ यहां माँ अंजनी की भी पूजा की जाती है। माँ अंजनी परिवार में सुख -शांति समृद्धि के आगमन का मार्ग प्रशस्त करती हैं। नवविवाहित दम्पति उनके दर्शन करने अवश्य ही जाते हैं, मान्यता है की यहाँ दर्शन करने से उन्हें उत्तम संतान की प्राप्ति होती है। बालाजी के मंदिर में शनिवार, मंगलवार, हनुमान जयंती व राम नवमी जैसी पूजा पर भारी भीड़ उमड़ती है।
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