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Navratri 2022: नवरात्रि का शाब्दिक ,सामाजिक भावार्थ

Myjyotish Expert Updated 25 Mar 2022 04:56 PM IST
नवरात्रि का शाब्दिक ,सामाजिक भावार्थ
नवरात्रि का शाब्दिक ,सामाजिक भावार्थ - फोटो : google

नवरात्रि का शाब्दिक ,सामाजिक भावार्थ


भारतीय संस्कृति के तमाम पर्व  की यही खूबसूरती है कि वह धार्मिक कर्मकांडों के सहारे बड़ा सामाजिक संदेश देते रहे हैं। आप कोई भी पर उठा लो होली, दिवाली, नवरात्रि आपको हर पर्व के पीछे मजबूत सामाजिक संदेश नजर आएगा। इसी क्रम में नवरात्रि की शुरुआत होने वाली है, बहुत सारे लोग नवरात्रि में 9 दिन व्रत- उपवास करते हैं तो विभिन्न उपायों के द्वारा मां दुर्गा को प्रसन्न कर मनोवांछित फल की चाहत रखते हैं। यूं तो हिंदी के चैत्र और अंग्रेजी के अप्रैल महीने में नवरात्रि के पर्व का संबंध भगवान राम के जन्म से जोड़ा जाता है, किंतु इसके नौ दिनों के व्रत में भी मां दुर्गा का ही पूजन मुख्यत: होता है। इस संबंध में तमाम पौराणिक कथाएं विद्यमान है तो वर्तमान में भी इसकी प्रसंगिकता यथावत बनी हुई है। मां दुर्गा देवी पार्वती का ही दूसरा नाम है, जिनकी उत्पत्ति राक्षसों का नाश करने के लिए देवताओं की प्रार्थना पर देवी पार्वती की इच्छा से हुआ था। हिंदुओं के शाक्त संप्रदाय में भगवती दुर्गा को ही दुनिया के पराशक्ति और सर्वोच्च स्थान दिया गया है।

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उपनिषदों में देवी " उमा हेमवती" का वर्णन है तो पुराण में दुर्गा को आदि शक्ति माना गया है। युद्ध की देवी दुर्गा के स्वयं कई रूप है, जिनकी नवरात्री के दौरान पूजा आराधना की जाती है। देवी का मुख्य रूप" गौरी" है, अर्थात काला रूप, जिसे देखने मात्र से ही भय की उत्पत्ति होती है, किंतु यह  उनके भक्तों के लिए नहीं बल्कि दुष्ट शक्तियों अर्थात राक्षस रूपी शक्तियों के लिए है। थोड़ा और विस्तार से बात करें तो भगवती दुर्गा पहले स्वरूप में "शैलपुत्री" के नाम से जानी जाती है और और ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम मानी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लेने के कारण इनका नाम "शैलपुत्री" पड़ा। इनका वाहन वृषभ है इसलिए वृषारूढा भी इनके कई नामों में  से एक है। इन के दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। मां दुर्गा का यही रूप "सती"के नाम से भी जाना जाता है।

इसी क्रम में नवरात्रि पर्व के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा- अर्चना की जाती है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी, जिस कारण इन्हें ब्रह्मचारिणी नाम से जाना जाता है। मां दुर्गा का तीसरा शक्ति का नाम चंद्रघंटा है , जिनकी पूजा नवरात्रि में तीसरे दिन होती है इनके मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है जिससे इनका या नाम पड़ा। इनके दस हाथ हैं जिनमें वह अस्त्र-शस्त्र लिए हैं ,हालांकि ऐसा माना जाता है कि देवी का यह रूप परम शांति दायक और कल्याणकारी है। इसी तरह नवरात्रि का पांचवा दिन स्कंदमाता की पूजा का दिन होता है ,मां दुर्गा के भक्त कहते हैं कि इनकी कृपा से मूर्ख भी ज्ञानी हो जाता है। स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से जाना जाता है और ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं इसलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। मां दुर्गा की छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है और इनकी उपासना से भक्तों को आसानी से अर्थ ,धर्म काम और मोक्ष की प्राप्ति संभव होती है। महर्षि कात्यायन ने पुत्री प्राप्ति की इच्छा से मां भगवती की कठिन तपस्या की देवी ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया, जिससे इनका यह नाम पड़ा। महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने कालिंदी यमुना के तट पर इनकी पूजा की थी। माना जाता है कि तब से ही अच्छे पति की कामना से कुंवारी लड़कियां इनका व्रत रखती है। नवरात्रि के इसी क्रम में दुर्गा पूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है।

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कालरात्रि की पूजा करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुल जाते हैं और सभी आसुरी शक्तियों का नाश होता है। देवी दुर्गा के इस नाम से ही पता चलता है कि इनका रूप भयानक है, जिनके तीन नेत्र और शरीर का रंग एकदम काला है। राक्षसी शक्तियां जहां इन से भयभीत हो जाती है वही इनकी कृपा से भक्त हर तरह के भय से मुक्त हो जाते हैं। नवरात्रि के अंतिम दिनों में मां दुर्गा के दो रूपों की महिमा का वर्णन भी कम रोचक एवं आध्यात्मिक नहीं है इसी संदर्भ में मां दुर्गा की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है, जिनकी आयु 8 साल की मानी गई है। इनके सभी आभूषण और वस्त्र सफेद होने की वजह से इन्हें श्वेतांबधरा कहा गया है। नवरात्रि पूजन के नौवें दिन देवी सिद्धिदात्री की उपासना की जाती है ।इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वालों को सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है ।भगवान शिव ने भी सिद्धिदात्री की कृपा से ही यह सभी सिद्धियां प्राप्त की थी।

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