नाग पंचमी विशेष : कब होता है 12 कालसर्प योग का प्रभाव, आइए जानें कुछ विशेष बातें
भारतीय वैदिक ज्योतिष में काल सर्प दोष को लेकर कई बातें प्रचलित हैं यहां प्राचीन वैदिक ज्योतिष शास्त्र में काल सर्प का उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन आधुनिक ज्योतिष विद्वानों ने इसे काल सर्प दोष नाम दिया और सर्प दोष के योग के प्रभाव से इसे काल सर्प दोष नाम दिया. इस बारे में विद्वानों की राय एक जैसी नहीं है.
आधुनिक ज्योतिष का मानना है कि राहु के अधिष्ठाता देवता काल हैं और केतु के अधिष्ठाता देवता सर्प हैं. यदि इन दोनों ग्रहों के बीच कुंडली में सभी ग्रह एक तरफ हों तो इसे कालसर्प दोष कहते हैं. इस दोष का प्रभाव जीवन में संघर्ष की अधिकता एवं मानसिक असंतोष के रुप में दिखाई देता है. काल सर्प दोष में कई प्रकार के नागों का उल्लेख मिलता है.
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सर्प दोष के नाम ओर उसका प्रभाव
अनंत कालसर्प योग-
लग्न में राहु, सप्तम में केतु होने पर इस अनंत कल सर्प योग का निर्माण होता है. इसके प्रभाव से जातक अपने करीबी लोगों द्वारा रची गई साजिशों का शिकार हो सकता है. व्यक्ति अदालतों के मामलों में हारने लगता है.
कुलिका कालसर्प योग-
दूसरे भाव में राहु, अष्टम में केतु होने से इस योग का प्रभाव पड़ता है. यह योग व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है. व्यय अधिक होगा तो आय और वित्तीय स्थिति काफी सामान्य नहीं रह पाती है. कुछ हासिल करने के लिए जीवन में काफी संघर्ष करना पड़ता है.
वासुकी कालसर्प योग-
तीसरे भाव में राहु, नवम में केतु का होना इस योग का प्रभाव डालता है. इसके कारण जातक को अपने भाइयों और दोस्तों के साथ परेशानी हो सकत है. विदेश यात्रा से परेशानी होती है.
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शंखपाल कालसर्प योग-
चतुर्थ भाव में राहु, दशम भाव में केतु का होना इस योग का कारण बनता है. इसके प्रभाव से जातक अपनी आर्थिक स्थिति से कभी संतुष्ट नहीं होता है. हमेशा अधिक के लिए प्रयास करता रहता है. व्यक्ति को अचल संपत्ति से संबंधित परेशानियों का सामना करना पड़ता है. भूमि, मकान और वाह इत्यादि से कष्ट अधिक रहता है.
पद्म कालसर्प योग-
पंचम भाव में राहु, ग्यारहवें भाव में केतु का होना इस योग का फल देता है. इसके प्रभाव से जातक को संतान से परेशानी हो सकती है या संतान सुख की कमी भी रहती है.
महापद्म कालसर्प योग-
छठे भाव में राहु, बारहवें में केतु का होना इस योग का फल देता है. जातक रिश्तों में अच्छा नहीं कर पाता है. जीवन के बारे में बहुत निराशावादी हो सकता है. संघर्ष अधिक परेशानी देते हैं.
तक्षक कालसर्प योग-
राहु सप्तम भाव में, केतु प्रथम भाव में होने से इस योग का असर दिखाई देता है. इसके कारण वैवाहिक जीवन और व्यावसायिक साझेदारी से संबंधित मामलों में व्यक्ति को अतिरिक्त सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है.
कार्कोटिक कालसर्प योग-
अष्टम भाव में राहु, द्वितीय भाव में केतु का होना इस योग का कारण बनता है. जातक को पैतृक संपत्ति से लाभ नहीं होता है. व्यक्ति और उसके दोस्तों के बीच मतभेद एवं विश्वास की कमी अधिक रह सकती है. स्वास्थ्य खराब रह सकता है.
शंखनाद कालसर्प योग-
नवम भाव में राहु, तीसरे भाव में केतु का होना इस योग का कारण बनता है. यह युति उच्च अधिकारियों, सरकार और स्थानीय प्रशासन से व्यापार और वाणिज्य के क्षेत्र में समस्याओं का संकेत देती है.
पातक कालसर्प योग-
दसवें घर में राहु, चौथे में केतु का होना इस योग का कारण बनता है. राहु का दसवें घर में होना नौकरी और उच्च अधिकारियों में समस्या का संकेत देता है. अपनी नौकरी के दौरान परेशानी
अधिक झेलनी पड़ सकती है.
विषाक्त कालसर्प योग-
ग्यारहवें भाव में राहु, पंचम में केतु का प्रभाव इस योग का कारण बनता है. यह युति व्यक्ति और उसके बड़े भाई के बीच बहुत सारी समस्याओं का संकेत देती है. जातक जीवन भर अपने जन्म स्थान से दूर भी रह सकता है. हृदय रोग, अनिद्रा आदि समस्याओं का भी सामना करना पड़ सकता है.
शेषनाग कालसर्प योग-
बारहवें भाव में राहु, छठे भाव में केतु का होना इस योग का कारण बनता है जातक को गुप्त शत्रुओं से परेशानी हो सकती है.
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