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जानिए कब और क्यों मनाई जाती है वरुथिनी एकादशी

My Jyotish Expert Updated 18 Apr 2020 12:46 PM IST
Varuthini Ekadashi 2020: Know when and why Varuthini Ekadashi is celebrated
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वरुथिनी एकादशी का बैसाख माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को कहा जाता है। मान्यता है की वरुथिनी एकादशी का व्रत करने वाले लोगों को परलोक में भी पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन रूप या अवतार की पूजा की जाती है। इस व्रत का उत्तर भारत और दक्षिण भारत में बहुत ही महातम है। इस व्रत को करने से भगवान विष्णु स्वयं ही अपने भक्तों की रक्षा करते है। इस पूजन के नियमों का पालन दशमी से ही शुरू करना चाहिए तथा एकादशी के दिन व्रत करके द्वादशी को विधि -विधान से पूजन संपन्नकर व्रत का पारण करना चाहिए।


संस्कृत शब्द "वरूथिन" से बना है वरुथिनी शब्द,जिसका अर्थ होता है प्रतिरक्षक, कवच या रक्षा करने वाला। इस व्रत से भक्त की सभी विपदाएं दूर हो जाती है। इस व्रत से अन्न दान व कन्या दान दोनों के समान ही फल प्राप्त होता है। मान्यता है जी जो मनुष्य धन के लोभ में दहेज़ लेते है वह अनंत काल तक नरक में वास करते है एवं उन्हें अगले जन्म में बिलाव रूप में जन्म लेना पड़ता है। जो प्रेम पूर्वक इस व्रत को संपन्न करते है  उनके द्वारा प्राप्त किए पुण्य का लेखा तो स्वयं भगवान चित्रगुप्त भी नहीं रख पातें है। विधिवत इस व्रत को सफल बनाने वाले व्यक्ति को गंगा स्नान समान फल प्राप्त होता है एवं उसको स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।

व्रत के दौरान रखे इन बातों का ध्यान :-

1.कांसे के बर्तन में भोजन ग्रहण न करें।
2.माँसाहार ,मसूर की दाल,चने व कद्दू की सब्जी न खाएं।
3.ब्रह्मचर्य का पालन करें।
4.व्रत वाले दिन जुआ नहीं खेलना चाहिए।
5.पान खाने व दातुन करने की मनाई है।
इस दिन भगवान मदुसूधन और भगवान विष्णु के वामन रूप के प्रतिमा की पूजा की जाती है। सुबह जल्दी उठकर स्नान आदिकार विधिवत भगवान की पूजा संपन्न करके व्रत को धारण करना चाहिए। बहुत से लोग इस दिन निर्जला , निराहार भी उपवास रखते है। इस दिन भगवान की व्रत कथा सुनना या पढ़ना भी बहुत फलदाई माना जाता है।रात को भगवान विष्णु के नाम का भजन भी गाने चाहिए। दूसरे दिन ब्राह्मण को भोजन व दान -दक्षिणा देकर व्रत को संपन्न करना चाहिए। सकुशल पूजा संपन्न करने से ईश्वर का बहुत आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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