हिन्दू धर्म में 16 संस्कार बताए गए हैं जिसमें नामकरण संस्कार पांचवा संस्कार माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार बच्चों के जन्म के समय उनके ग्रहों की दशा को देखकर ही उनकी कुंडली बनाई जाती है। कुंडलीनुसार ही बच्चे की चंद्र राशि के आधार पर राशि के प्रथम अक्षर के माध्यम से शिशु का नाम रखा जाता है। नामकरण संस्कार बच्चे के जन्म के दसवें दिन के बाद किसी भी शुभ मुहूर्त में किया जाता है। पूरे घर की साफ -सफाई करके सजावट की जाती है। बालक को नहलाकर नए वस्त्र धारण करवाए जाते हैं। उसके माता-पिता भी नए वस्त्र पहनकर उसे गोद में लेकर पूजा में बैठते हैं तथा पूजा-पाठ और हवन संपन्न किया जाता है।
कुछ लोग इसे ‘पालनारोहन’ भी बोलते हैं। संस्कृत में ‘पालना’ का अर्थ होता है "झूले" और ‘रोहन’ का अर्थ बैठाना होता है। आजकल लोग पहले ही कुंडली बनवा कर अक्षर पता करवा लेते हैं। जिसके अनुसार वह पहले ही कोई अच्छा सा नाम अपने बालक के लिए खोजकर रखते हैं। पूजा आदि के बाद सबसे पहले बच्चे के माता-पिता उसका नाम उसके कान में बोलते हैं जिसके बाद एक-एक कर अन्य परिवार वाले बालक को गोद में लेकर स्नेह के साथ उसे पुकारते हैं। जिससे उसे अनेकों लोगों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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