कथन अनुसार समुद्र मंथन के समय स्वरभानु नामक एक असुर ने धोखे से दिव्य अमृत की कुछ बूंदों को ग्रहण कर लिया था। परन्तु सूर्य और चंद्र ने उसे पहचान लिया और तुरन्तु मोहिनी अवतार धारण किए हुए भगवान विष्णु को बता दिया। इससे पहले कि अमृत उस असुर के गले से नीचे उतरता, विष्णु जी ने उसका गला सुदर्शन चक्र से काट कर अलग कर दिया। परन्तु तब तक उसका सिर अमर हो चुका था। देवताओं से इस द्वेष के कारण ही उस असुर का गला राहु व उसका धड़ केतु बने जो सूर्य व चंद्र पर ग्रहण लगाते हैं।
राहु के शुभ प्रभाव से जातक की वाक् पटुता (हाजिरजवाबी) बहुत अच्छी होती है। इसके शुभ प्रभाव से व्यक्ति अपने बड़े से बड़े शत्रु को मित्र बनाने की क्षमता रखता है। उनकी विकट परिस्थिति से बाहर निकलने की प्रबल क्षमता तथा युक्तिबल काफी अच्छी होती है। राहु के शुभ-प्रभाव से जातक को विदेशों में नौकरी करने तथा राजनीति में सफलता के गुण प्राप्त होते हैं। राहु के शुभ प्रभाव से अथक परिश्रम से जातक को थकान नहीं होती है। वह भाग्यशाली व बलशाली कहलाता है।
वही दूसरी ओर राहु के अशुभ प्रभाव से जातक बहुत अधिक झूठा (मक्कार) हो जाता है। उसके मन में बेवजह, काल्पनिक भय उत्पन्न हो जाता है। कई बार तो व्यक्ति को राहु के दुष्प्रभाव से अपयश और कलंक का भागी होना पड़ता है। अशुभ राहु के असर से धोखाधड़ी और छल, कपट की प्रवृत्ति प्रबल होती है। राहु के अशुभ प्रभाव से व्यक्ति नशे के कार्य में ज्यादा रूचि लेता है। तथा व्यक्ति निष्ठाहीन हो जाता है एवं अपने नैतिक जिम्मेदारी से भटक जाता है | वह विश्वास का पात्र नहीं रह जाता है। उनकी वाणी में कठोरता उत्पन्न होती है। व्यक्ति के जीवन पर राहु के शुभ -अशुभ प्रभावों का बहुत ही गहरा असर होता है।
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