बैसाखी त्यौहार का यह समय बहुत ही खास होता है। इस समय तक खेतों में खरीफ की फसलें पक कर पूरी तरह से तैयार हो जाती हैं। इस पकी फसल को देख किसान अपनी मेहनत पर बहुत खुश होता है और इसी ख़ुशी के इजहार में बैसाखी का त्यौहार मनाया जाता है।13 अप्रैल 1699 के दिन सिख पंथ के 10वें गुरू श्री गुरू गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। इसी के साथ ही बैसाख के त्यौहार का दिन मनाना शुरू किया गया था। इसी दिन से पंजाबी नए साल की शुरुआत भी होती है।
हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बैसाखी को नव वर्ष के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन सुबह उठकर स्नान, भोग आदिकर पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बहुत वर्ष पहले मुनि भगीरथ कठोर तपस्या के बाद देवी गंगा को धरती पर बुलाने में इसी दिन कामयाब हुए थे। जिसके कारण इस दिन हिन्दू संप्रदाय के लोग गंगा स्नान कर उनकी स्तुति कर स्वयं के तन -मन को शुद्ध करते हैं।
ज्योतिषाचार्य मानते हैं कि लोगों के राशिफल पर बैसाखी का लोगों के जीवन पर सकारात्मक व नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसे सौर नववर्ष भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस दिन सूर्य अपनी उच्चतम राशि मेष में प्रवेश करता है। इस दौरान पर्वतीय इलाकों में मेलों का भी आयोजन किया है। इस दिन देवी की पूजा भी की जाती है तथा लोग उनसे अपने घर-परिवार की समृद्धि के लिए कामना करते हैं।
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