उनके द्वारा बताए गए पांच सिंद्धांत थे :
1.अहिंसा : सभी जीवजंतु की रक्षाकर किसी के साथ भी हिंसा नहीं करनी चाहिए।
2. सत्य : सदैव सत्य का मार्ग अपनाए चाहे परिस्थिति कोई भी हो।
3.अस्तेय : चोरी -चकारी जैसे कार्यों से बचकर रहें।
4. ब्रह्मचर्य : व्यभिचार न करें अर्थात अपनी इन्द्रियों को अपने वश में रखें।
5. अपरिग्रह : आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह न करें।
भगवान महावीर जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर थे। इनका जन्म 599 ईसा पूर्व बिहार के वैशाली में कुण्डलपुर के लिच्छिवि वंश में हुआ था।उनके पिता महाराज सिद्धार्थ और महारानी त्रिशला थी। बचपन में भगवान महावीर को "वर्धमान" नाम से भी जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार इनके जन्म के पश्चात अत्यंत तेज़ी से विकास होने के कारण ही इनका नाम वर्धमान रखा गया था। जैन अनुयायियों का मानना है की महावीर ने 12 वर्ष की कठोर तपस्या के बाद अपनी इन्द्रियों को वश में कर लिया था जिसके कारण उनका नाम जिन अर्थात विजेता भी पड़ गया था।
मान्यताओं के अनुसार भगवान महावीर के जन्म से पहले माता त्रिशला को 16 स्वपन दिखाई दिए थे। जिसमें उन्होंने चार दांतों वाला हाथी, सफेद वृषभ, एक सिंह, सिंहासन पर स्थित लक्ष्मी, फूलों की दो मालाएं, पूर्ण चंद्रमा, सूर्य, दो सोने के कलश, समुद्र, सरोवर, मणि जड़ित सोने का सिंहासन आदि अपने स्वप्न में देखे था। इन स्वपनों का अर्थ उन्हें महाराज सिद्धार्थ द्वारा बताया गया की उनका पुत्र धर्म का प्रवर्तक, सत्य का प्रचारक, जगत गुरु, सर्वज्ञ ज्ञानी आदि अन्य लक्षणों से युक्त होगा।
इस महोत्सव के अवसर पर जैन मंदिरों को विशेष रूप से सजाया जाता है। भारत में अनेकों स्थान पर जैन समुदाय के लोगों द्वारा अहिंसा रैली निकाली जाती है। इस दिन गरीब व जरुरतमंदो को दान -दक्षिणा प्रदान की जाती है। कई राज्यों में इस दिन मांस व मदिरा की दुकानों को बंद रखने का आदेश भी दिया जाता है। मंदिरों में इनके जन्म के अवसर पर इनके जन्म, जीवन, उपदेश के बारे में बताया जाता है।
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