कथाओं के अनुसार यह वृक्ष समुद्र मंथन के समय देवताओं के हिस्से में आया था जिसे देवराज इंद्र को दे दिया गया था। इंद्र द्वारा इस वृक्ष की स्थापना "सुरकानन वन" में की गई थी। इस वृक्ष के बारे में कहा जाता है की इसका अंत कल्पांत तक नहीं हो सकता है। ऐसे ही एक वृक्ष का वर्णन इस्लाम में भी है जिसका नाम "तुबा" है। इसके बारें में भी धार्मिक मान्यता है की यह "अदन " में सदैव ही फलता-फूलता रहता है।
ओलिएसी कुल के इस वृक्ष का वैज्ञानिक नाम ओलिया कस्पीडाटा है। यह यूरोप के फ्रांस और इटली में बहुत ही अधिक मात्रा में पाया जाता है। यह सामान्य मात्रा में दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में भी पाया जाता है। भारत में इसका वानस्पतिक नाम बंबोकेसी है। इसे पहली बार 1775 में फ्रांसीसी वैज्ञानिक माइकल अडनसन द्वारा अफ्रीका में सेनेगल में देखा था। इसी आधार पर इसका नाम अडनसोनिया टेटा रखा गया। इसे बाओबाब भी कहते हैं।
वृक्षों और जड़ी-बूटियों के जानकारों के अनुसार यह वृक्ष एक बेहद मोटे तने वाला फलदायी वृक्ष है। इसकी टहनी लंबी होती है और पत्ते भी लंबे होते हैं। यह वृक्ष पीपल के वृक्ष के समान फैलता है तथा इसके पत्ते कुछ-कुछ आम के पत्तों की तरह होते हैं। इस वृक्ष का फल नारियल की तरह होता है, जो वृक्ष की पतली टहनी के सहारे नीचे लटकता रहता है। इसका तना देखने में बरगद के वृक्ष जैसा दिखाई देता है। इसका फूल कमल के फूल में रखी किसी छोटी- सी गेंद में निकले असंख्य रुओं की तरह होता है। मान्यता है की इस वृक्ष के नीचे बैठकर यदि सच्चे मन से कोई भी प्रार्थना की जाए तो वह अवश्य ही पूर्ण हो जाती है।
यह भी पढ़े :
जानिए क्यों की जाती है गुरुवार के दिन भगवान बृहस्पति की पूजा
लक्ष्मी कुबेर की पूजा से होगी धन तथा यश की प्राप्ति
जानिए क्यों महत्वपूर्ण है बुध ग्रह की आराधना