त्रिपुण्ड कोई साधारण तिलक नहीं होता है। कहते है की इसमें 27 देवताओं का वास है जिसमें एक रेखा में 9 देवता विद्यमान हैं। इस तिलक की विशेष बात यह है की इसे न सिर्फ अपने माथे पर परन्तु शरीर के 32 विभिन्न अंगो पर लगाया जा सकता है। हर अंग पर यह तिलक लगाने का एक भिन्न अर्थ है। इस तिलक को मस्तक, ललाहट, दोनों कान, दोनों नेत्र, दोनों कोहनी, दोनों कलाई, हृदय, दोनों पाश्र्व भाग, नाभि, दोनों घुटने, दोनों पिंडली और दोनों पैरो पर लगाया जा सकता है।
शरीर के 32 अंगो पर यह तिलक उक्त जगह के देवता को जाग्रत करने के उद्देश्य से लगाया जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शरीर के हर अंग में देवताओं का वास माना जाता है। सिर पर शिव, बालों में चंद्रमाँ, दोनों कार्यों में रूद्र और ब्रह्मा, मुख में गणेश, दोनों भुजाओं में विष्णु और लक्ष्मी, हृदय में शम्भू , नाभि में प्रजापति, दोनों उरुओं में नाग व नागकन्याएँ, दोनों घुटनों में ऋषि कन्याएँ, दोनों पैरों में समुद्र और विशाल पुष्ट्भाग में सभी तीर्थ देवताओं का वास माना जाता है।
भस्म मुख्य रूप से यज्ञ व हवन में जली हुई पवित्र सामग्री से प्राप्त होता है। शिव पुराण में बताया गया है की जो व्यक्ति रोज माथे पर त्रिपुण्ड या भस्म का तिलक लगाता है उसे भोलेनाथ की कृपा अवश्य ही प्राप्त होती है तथा उसके सभी पापों का नाश होता है। इस तिलक से हमारे माथे पर शीतलता प्रदान होती है। यह तिलक हमें मानसिक शांति प्रदानकर हमारे मन में सकारात्मक विचारों की बढ़ोतरी करता है। इस तिलक से शिव आशीर्वाद सदैव ही उनके भक्तों पर बना रहता है।
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