अगली कालाष्टमी 4 फरवरी को पड़ने वाली है। इसका व्रत वैसे तो सप्तमी तिथि से ही शुरू हो जाता है। इस दिन भैरव की पूजा अर्चना करने से व्यक्ति की सभी अभिलाषा पूर्ण हो जाती है। क्योंकि भैरव का जन्म भगवान शिव के क्रोध से हुआ था इस दिन इसीलिए कालाष्टमी मनाई जाती है। भैरव को दंडपाणी भी कहा जाता है क्योंकि वह साक्षात दुष्टों के काल माने जाते हैं।
कालभैरव के जन्म से जुड़ी कथा
एक बार ब्रह्मा और विष्णु के बीच एक बात पर विवाद हो गया था। दोनों अपने को महान बताकर शिव को तुच्छ कहने लगे। तब शिव को क्रोध आ गया। इस क्रोध के कारण ही भैरव नाम के विकराल पुरुष की उत्पत्ति हुई। भैरव का स्वरूप अत्यंत विकराल, स्वयं काल के समान था, जिससे काल को भी डर लगता था। जिसके कारण इनका नाम कालभैरव हुआ। शिव ने कालभैरव को ब्रह्मा पर अधिकार कर संसार का पालन करने का आदेश दिया।
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कालभैरव ने ब्रह्माजी का पांचम सिर अपने नरवाग्र से अलग कर दिया। इसके पश्चात ब्रह्मा और विष्णु महाकाल के शरणागत हो गए। तब शिव ने दोनों को माफ किआ। उसके बाद काल भैरव से कहा कि चूंकि भैरव भक्तों के पापों का तत्काल नाश कर देंगे अत: भैरव महाराज को पापभक्षण के नाम से भी जाना जाएगा। इसके साथ ही विश्वनाथ ने भैरव को अपनी काशी का कोतवाल भी बना दिया।
कब है कालाष्टमी का शुभ मुहूर्त:
माघ, कृष्ण अष्टमी, 4 फरवरी, गुरुवार
अष्टमी तिथि प्रारंभ होगी - 4 फरवरी, गुरुवार रात 12 बजकर 7 मिनट से
अष्टमी तिथि समाप्त होगी - 5 फरवरी, शुक्रवार रात 10 बजकर 7 मिनट पर।
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