कुंभ के मेले में ऐसी शक्ति का प्रवाह होता है जो भारतीयों और बाहर से पधारे लोगों को मानो एक धागे में किसी मोती की तरह पीरो लेती है। वह इसी ऊर्जाशक्ति के समक्ष नमन करने कुंभ मेलों में चले आते हैं। जो यहां आते हैं वे अपने साथ एक आध्यात्मिक एहसास ले कर के जाते हैं तथा दुबारा जल्द ही इस कुंभ में आने का निश्चय करते हैं।
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हरिद्वार में गंगा तट पर नासिक में त्र्यंबकेश्वर, प्रयागराज का संगम तथा उज्जैन की शिप्रा में ना जाने कितने ही सैकड़ों वर्षो से यह प्रथा चली आ रही है तथा अब तक न जाने कितने ही अरबों भारतवासी और दुनिया भर के लोग इस विशाल आयोजन का हिस्सा बनकर अपने आपको धन्य कर चुके हैं। यह कुंभ अपने आप में एक सेतु का कार्य करता है जो लोगों को अध्यात्म से, ईश्वर से तथा अपने आप से बड़ी आसानी से जोड़ देता है।
कुंभ में किसी भी मनुष्य को आने की मनाही नहीं होती है। यहां पर खुला आमंत्रण होता है या कहा जाए कि किसी को कोई आमंत्रण नहीं भेजा जाता। यहां पर सब का स्वागत है। दुनिया में रहने वाले हर एक इंसान का चाहे वह गृहस्थ हो चाहे वह सन्यासी चाहे अमीर चाहे गरीब चाहे औरत चाहे आदमी। हर किसी को निमंत्रण होता है। हर कोई यहां आकर के अध्यात्म तथा ज्ञान प्राप्त कर सकता है।
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