जन्माष्टमी स्पेशल : वृन्दावन बिहारी जी की पीताम्बरी पोशाक सेवा
कृष्ण को 56 भोग लगाने का कारण
ऐसा कहा जाता है जब भगवान श्री कृष्ण अपने बचपन में मां यशोदा के साथ रहा करते थे तब उनकी मां उन्हें दिन में 8 बार भोजन करवाया करती थीं और आठों बार अपने ही हाथों से उन्हें भोजन कराती थीं ताकि कृष्ण को पेट भरकर खाना खिलाया जा सके। एक दिन बृजवासी इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए एक बड़ा आयोजन करा रहे थे। तो कृष्ण ने अपने पिता से पूछा कि ये आयोजन किस लिए हो रहा है तो उन्होंने बताया कि यह आयोजन स्वर्ग के भगवान इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए किया जा रहा है। इससे अच्छी बारिश होगी और अच्छी फसल होगी। तब कृष्ण ने कहा जब बारिश करवाना इंद्रदेव का काम है तो ये पूजा कराने की जरूरत क्या है आखिर। अगर पूजा और आयोजन करना ही है तो गोवर्धन पर्वत की करो ताकि हमें अच्छा फल प्राप्त हो सके। तब सभी को कृष्ण की बात उचित और तार्किक लगी। सभी ने इंद्र की पूजा ना कर के गोवर्धन की पूजा की जिससे इंद्रदेव को लगा कि ये उनका घोर अपमान है और वे क्रोधित हो गए।
जब इंद्रदेव बहुत क्रोधित हो गए तो उन्होंने तेज वर्षा शुरू कर दी और वह वर्षा बढ़ते बढ़ते इतनी बढ़ गई कि हर जगह पानी पानी ही दिखने लगा और यह बाढ़ का रूप लेने लगा। अब जब पानी बढ़ने लगा तो कृष्ण ने सबको कहा कि अब सिर्फ गोवर्धन ही सबकी रक्षा कर सकते हैं और हमें उनकी शरण में जाना चाहिए। कृष्ण ने अपनी सबसे छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाया और पूरे बृज और वहां के वासियों की रक्षा की। अगले सात दिनों तक भगवान कृष्ण ने कुछ नहीं खाया पीया और बस पर्वत को उठाए खड़े रहे। फिर जाकर 8वें दिन बारिश बंद हुई और सब लोग गोवर्धन की शरण से बाहर आए। इसके बाद सब ने सोचा कि कृष्ण ने उनकी लगातार 7 दिनों तक भाषा से वर्षा से रक्षा की और कुछ खाया पिया भी नहीं। इसलिए माता यशोदा के साथ सभी ब्रिज वासियों ने कृष्ण के लिए हर दिन आठों पहर अगले 7 दिनों तक अलग-अलग भोजन बनाने शुरू किए और उन्हें खिलाए। इस प्रकार भगवान कृष्ण को छप्पन भोग का भोग लगाया जाता है और इनमें हर मिष्ठान भगवान कृष्ण की पसंद का होता है।
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