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इस वर्ष होलाष्टक क्यों है ख़ास ? जानें इसका महत्व

Myjyotish Expert Updated 17 Mar 2021 01:08 PM IST
Holashtak
Holashtak - फोटो : Myjyotish
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होलाष्टक की उत्पत्ति द़ो शब्दों से हुई है होली और अष्टक जिसमें होली रंगों का त्यौहार है अष्टक का तात्पर्य फाल्गुन माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनायी जाती है 
आज हम जानेगे इसके महत्व को

क्या है होलाष्टक

ये फाल्गुन माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनायी जाती है क्योंकि ये होली से पहले मनायी जाने वाली अष्टमी होती है जिसके कारण वश इसे होलाष्टक कहा जाता है
ये होली के आठ दिन के पहले मनायी जाती है   इस साल 22 मार्च से 28 मार्च 2021 तक के बीच होलाष्टक  है
माना जाता है कि होलाष्टक पर शुभ काम, गृह प्रवेश मांगलिक कार्य करना अच्छा नहीं होता किन्तु
 फाल्गुन के माह में भगवान कृष्ण और शिव जी को समर्पित होता है, इसलिए होलाष्टक की अवधि में इनकी पूजा करना बहुत शुभ माना जाता है

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क्यों  है होलाष्टक के महत्व को  जानना जरूरी

होलाष्टक को कोई भी शुभ काम न करने के कुछ कारण है ज्योतिष इस पर कहते हैं इन दिनों वातावरण पूरी तरह से नकरात्मकता का प्रभाव रहता है साथ ही होलीष्टक की तिथि से लेकर पूर्णिमा तक सभी ग्रहो में नकरात्मकता का भाव रहता है जिसके चलते इस समय शुभ काम नहीं किए जाते हैं इनमें अष्टमी तिथि को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चुतर्दशी को मंगल तो पूर्णिमा को राहु की ऊर्जा काफी नकारात्मक रहती है इसी कारण यह भी कहा जाता है कि इन दिनों में जातकों के निर्णय लेने की क्षमता काफी कमजोर होती है जिससे वे कई बार गलत निर्णय भी कर लेते हैं जिससे हानि होती है होलाष्टक में भले ही शुभ कार्यों के करने की मनाही है लेकिन देवताओं की पूजा अर्चना कर सकते हैं

होलाष्टक जुड़ी हुई कहानी

पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान शिव सती के वियोग मे समाधि में लीन हो ग ए थे तब कामदेव ने उनको समाधि से उठाने के लिए  उन्हें भगवान शिव पर अपने   काम देव बल का उपयोग किया था जिससे भगवान शिव इतने क्रोधित हो गए है  कि उन्होंने कामदेव को भस्म कर दिया इसके पश्चात जब उनकी धर्म पत्नी रति ने भगवान शिव से उनके इस कृत्य के लिए क्षमा अर्चना की तब भगवान शिव कामदेव को पुनः जीवित किया.

दूसरी कथा अहंकारी राजा हिरण्यकश्यप की है जिसकी बहन होलिका ने अपने भाई की मदद करने के लिए भगवान विष्णु के सबसे बड़े भक्त प्रहलाद को फाल्गुन माह की शुक्ल पक्ष में उन्हें बहुत दुख दिया और अष्टमी को होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठी किन्तु होलिका का वरदान जो उसे भगवान ब्रह्मा से मिला था जिसके अनुसार उसे अग्नि नहीं छु सकती है वो उसके लिए अभिशाप बन गया और होलिका स्वयं उस अग्नि में जल गयी जबकि  विष्णु भगवान की असीम कृपा से प्रहलाद इसमें बच गया.

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