समुद्र पार न जाने की कसम से हिंदुओ ने बहुत कुछ खोया
समुद्र पार न जाने की वजह से बहुत कुछ खोया है तो पाया भी है। जैसे इंडोनेशिया में ही हिंदुओ की मंदिर का प्रमाण मिला है ।इस प्रतिबद्ध की वजह से उनके व्यापार के साथ साथ ,कही न कही उनके भोजन पर भी प्रभाव पड़ा था क्योंकि कई बार उन्हें पार भी जाना पड़ता था। हिंदुस्तानी उदार स्वभाव के होते थे। यही उनकी कमजोरी थी।जब उन पर विदेशी हमले हुए तो वो अपनी समझ भूल चुके थे।
वो लगता ही नहीं था की इतने ज्ञाता भी हो सकते है। गजनी ने भी भारत आया और वह सोमनाथ मंदिर लूट के ले गया पूरा मंदिर का सोना ले गया ( जितना उससे हो सके) । अल बेरुनी ने अपने पुस्तक में बताया है कि भारतीयों की बखूबी से व्याख्या की है उसने भारतीयों को समझने की काफी हद तक कोशिश की है।
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गाय का वध न करने की परंपरा तब भी थी
गाय की वध करने की परंपरा पहले थी भी और नहीं भी। प्राचीन काल में पाया जाता है की गाय की क्या क्या उपयोगिता हो सकती है ।वैदिक काल में तो गाय धन का साधन था । एक विचारक के अनुसार वासुदेव जी ने भी अपने समय में गाय की हत्या पर प्रतिबंध लगाया था। कई राजाओं ने तो युद्ध में कई शर्ते मान भी ली ताकि गया की हत्या रुक जाए उसमे से पाल भी है और शर्त के मुताबिक गजनवी भी मन गया ।
कई राजाओं ने गया की हत्या पर रोक लगाने में सफल भी हुए है । माना जाता है की राम जी के समय जब अश्वमेध यज्ञ हो रहा था तब उन्होंने भी गया की बलि प्रथा को समाप्त किया था । विचरको के अनुसार गया को कई जगह देवी मान कर पूजा जाता था ।
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भारत में गिनती 18 घात तक की जाती है
हिंदुओ की उस समय गणित बहुत अच्छी होती थी आज की अपेक्षा अल बेरुनी ने भी इसकी तारीफ की है। 18 घात गिनती से तात्पर्य एकम ,दशम ,शतम, सहस्त्रम, लछ, प्रयूत, कोटि etc और भी नाम है ।कुछ विचारकों ने तो अपनी पुस्तक में भी इसकी व्याख्या की है । बेरुनी गजनवी के साथ पर उसकी ज्यादा बात नहीं कि है।जबकि गजनवी ने सोमनाथ मन्दिर में सोना लगभग 1700 ऊट ,हीरे जवाहरात सब ले कर चला गया ।
आगे वह रेगिस्थान पार नहीं कर सका और उसका सारा लूटा खजाना गिर रेगिस्थान में गिर गया। किसी तरह वह गिरते पड़ते वह गजनी पहुंचा जहा उसकी मृत्यु 1030 में हो गया।अगर बेरुनी ने सुलतान की व्याख्या की है तो जाहिर है की उस समय वह था और सुलतान के अत्याचार से उसका पाला पड़ा था।
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