वैसे तो नवरात्रियों में माँ दुर्गा के 9 विभिन्न रूपों की अर्चना होती है किंतु गुप्त नवरात्रि में मां नवदुर्गा के साथ ही तांत्रिक 10 महाविद्याओं को भी प्रसन्न करने हेतु विशेष अर्चना करते हैं। गुप्त नवरात्रि की जानकारी कम ही लोगों को होती है। इसलिए ही इसको गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। इस नवरात्रि में विशेष मनोकामनाओं की सिद्धि होती है।
गुप्त नवरात्रि में मां भगवती की पूजा का महत्व होता है। आम नवरात्रों में आराधना सात्विक और तांत्रिक दोनों ही तरह के लोग करते हैं। लेकिन गुप्त नवरात्रों में माता की साधना मुख्यतः तांत्रिक ही करते हैं। गुप्त नवरात्रि में आराधना का प्रचार, प्रसार नहीं किया जाता। पूजा, मंत्र, पाठ और प्रसाद को गोपनीय ही रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन नवरात्रों में पूजा को जितना गोपनीय तथा गुप्त रखा जाएगा। फल की प्राप्ती उतनी ही होती है।
कैसे होती है गुप्त नवरात्रि की पूजा अर्चना
तांत्रिक गुप्त नवरात्रियों में अर्धरात्रि को मां दुर्गा की पूजा करते हैं। मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित करने के दौरान उनपर लाल सिन्दूर और लाल रंग की चुनरी चढ़ाई जाती है। इसके बाद उनके चरणों में नारियल, केले, सेब, तिल के लडडू और बताशे अर्पित करे जाते हैं। लाल गुलाब या गुड़हल का पुष्प भी चढ़ाया जाता है। सरसों के तेल वाला दिया जलाकर
'ॐ दुं दुर्गायै नमः
मंत्र का जाप करें।
साधना के लिए होती है इन महाविद्याओं की अर्चना
गुप्त नवरात्रि तांत्रिकों के लिए विशेष महत्व रखती है। इस दिन तांत्रिक एवं साधक मां के 10 रूप, जिन्हें कि महाविद्या के नाम से भी जाना जाता है की साधना करते हैं ताकि गुप्त सिद्धियँ प्राप्त कर सकें। गुप्त नवरात्रि के दौरान महाविद्या के जिन रूपों की पूजा की जाती है उनके नाम हैं- मां काली, तारा देवी, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी एवं कमला देवी।
दस महाविद्याएं इन गुणों की प्रतीक होती हैं।
काली ( बाधाओं से मुक्ति)
तारा ( आर्थिक रूप से उन्नति)
त्रिपुर सुंदरी ( सौंदर्य एवं ऐश्वर्य)
भुवनेश्वरी ( शांति)
छिन्नमस्ता ( वैभव, शत्रु पर विजय)
त्रिपुर भैरवी ( सुख-वैभव, विपत्तियों का निदान)
धूमावती ( दरिद्रता मुक्त)
बगलामुखी ( वाद विवाद एवं शत्रु पर विजय)
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