संत पुरुष कुंभ मेले में स्नान के दौरान विश्वकल्याण की मनोकामना करते हैं और संपूर्ण विश्व में सकारात्मकता तथा शांति संदेश प्रवाहित करते हैं। मंथन के दौरान निकली बूंदे हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में जाकर के गिरी थी। इसीलिए इन चारों स्थानों पर कुंभ का आयोजन होता रहा है। अमृत की प्राप्ति हेतु दानवों और देवों में 12 दिनों तक निरंतर युद्ध चला था। क्योंकि देवताओं के 12 दिन मनुष्य के 12 वर्षों के बराबर होते हैं इसलिए कुंभ भी 12 होते हैं।
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इन 12 कुंभों में से चार पृथ्वी पर तथा शेष आठ देव लोक में आयोजित होते हैं। जिसमें देवता शामिल होते हैं। जो व्यक्ति परमात्मा की प्राप्ति करना चाहता है तथा अपने पापों से मुक्त होना चाहता है वह आकर के मां गंगा में डुबकी लगाता है तथा अपने आपको सौभाग्यवान महसूस करता है।
इससे लोग अपने पापों से मुक्त होते हैं अपितु जीवन मरण के इस भवसागर से भी मुक्ति पा जाते हैं। इससे जन्म जन्मांतर के पापों का अंत होता है तथा व्यक्ति को अपने पुण्यों के हजार गुना बराबर फल प्राप्त होता है। हर कुंभ की ही तरह यह कुंभ मेला भी अच्छे से संपन्न होगा तथा संत महात्माओं का आशीर्वाद बना रहेगा।
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