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भद्रकाली जयंती पूजन से समाप्त होगा शत्रुओं का भय और मिलेगी संकटों से मुक्ति
भद्रकाली जयंती का त्योहार ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है. भद्रकाली जयंती 26 मई 2022 को गुरुवार के दिन मनाई जाएगी. 'भद्र' को अच्छे स्वरुप के लिए उपयोग में लाया जाता है जिसका मतलब होता है शुभ काली. ऐसा माना जाता है कि भद्रकाली जयंती के दिन देवी की पूजा करने पर वह भक्त की सभी संक्टों से रक्षा करती हैं. इस दिन को भारत के कुछ राज्यों में अपरा एकादशी के रूप में भी मनाया जाता है और उड़ीसा में इसे जलक्रीड़ा एकादशी के रूप में मनाया जाता है.
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देवी भद्रकाली स्वरुप
देवी भद्रकाली, जिन्हें युद्ध की देवी के रूप में जाना जाता है, देवी शक्ति या आदि परा शक्ति के उग्र रूपों में से एक हैं. साथ ही शक्ति और उग्रता का प्रतीक, भारत के विभिन्न हिस्सों में देवी भद्रकाली के विभिन्न मंदिर हैं. अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से मौजूद है. देवी के विभिन्न रुप में देवी दुर्गा, देवी शक्ति, महादेवी या महामाया. भद्रकाली, महाकाली, शंख, धनुष, भाला इत्यादि शस्त्र धारण किए हुए हैं. चामुंडा और काली मूर्ति के रूप में पूजी जाती हैं. देवी भद्रकाली के स्वरुप को तीन नेत्र धारी और चार, सोलह या अठारह हाथों से दर्शाया जाता है. देवी त्रिशूल, तलवार, बाण, चक्र,
देवी भद्रकाली मंदिर
उत्तर भारत में नेपाल से लेकर दक्षिण भारत में केरल और पश्चिम भारत में गुजरात से लेकर पूर्वी भारत में पश्चिम बंगाल तक, भद्रकाली मंदिर हर जगह स्थित हैं. वह मुख्य रूप से भारत के दक्षिणी भाग, विशेष रूप से केरल और तमिलनाडु में है देवी भद्रकाली के कुछ प्रसिद्ध मंदिर हैं.
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार यह माना जाता है कि इस शुभ दिन पर, देवी सती की मृत्यु के बारे में सुनकर, देवी भद्रकाली भगवान शिव के बालों से प्रकट हुई थीं. देवी शक्ति के 'अवतरण' का मुख्य कारण पृथ्वी से सभी राक्षसों को नष्ट करना था. भद्रकाली जयंती हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण पूजा का दिन है और पूरे देश में बहुत जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है. यह आर्य सारस्वत ब्राह्मणों के प्रमुख त्योहारों में से एक है और यह उत्सव भारतीय राज्यों हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और कश्मीर में बहुत प्रसिद्ध है.
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भद्रकाली जयंती पूजा विधि
हिंदू भक्त देवी भद्रकाली की पूरी भक्ति और समर्पण के साथ पूजा करते हैं. भक्त सुबह जल्दी उठते हैं और सुबह की रस्में पूरी करने के बाद इस दिन काले वस्त्र धारण करते हैं. भद्रकाली जयंती पर काला या नीला रंग पहनना शुभ माना जाता है. भद्रकाली माता की मूर्ति को जल, दूध, चीनी, शहद और घी से पवित्र स्नान कराया जाता है. इसके बाद 'पंचामृत अभिषेक' पश्चात माता की मूर्ति को सुसज्जित किया जाता है. इस दिन देवी को नारियल पानी चढ़ाना भी बहुत शुभ माना जाता है. इसके बाद चंदन पूजा और बिल्व पूजा होती है.
पूजा दोपहर में शुरू होती है और देवी भद्रकाली को प्रसन्न करने और उनका दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए कई देवी मंत्रों का पाठ किया जाता है. भक्त शाम को देवी काली के मंदिरों में भी जाते हैं,
भद्रकाली मंत्र
ॐ हौं काली महाकाली किलिकिल फट् स्वाहा ।
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