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इस योग के कारण व्यक्ति अपनी किस्मत को धनवान खुद बनाता है। कुंडली में पहला, दूसरा, पांचवां, नौवां और ग्यारहवां भाव धन देने वाले भाव होते हैं। अगर इनके स्वामियों में युति, दृष्टि या राशि परिवर्तन संबंध बनता है तो इस स्थिति में धन का योग बनता है। इस राजयोग से व्यक्ति का आर्थिक जीवन बहुत समृद्ध व ऊंचाइयों को छूता है।
खास बात यह है कि इस राजयोग के कारण व्यक्ति को अध्यात्म के क्षेत्र में सफलता मिलती है। अगर आपकी कुंडली में गुरु बृहस्पति चंद्रमा से केन्द्र भाव में हो और किसी क्रूर ग्रह से संबंध नहीं रखता हो तो कुंडली में गज-केसरी राजयोग बनता है। इस योग के कारण व्यक्ति धर्म और अध्यात्म के क्षेत्र में कामयाबी हासिल कर लेता है। ऐसे व्यक्तियों को सरकारी सेवाओं में उच्च पद की प्राप्ति होती है।
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अगर आपकी कुंडली में जब केन्द्र भावों का संबंध त्रिकोण भाव से हो तो ऐसी स्थिति में पाराशरी राजयोग का निर्माण होता है। दशावधि में इस योग के प्रभाव से आपको जीवन में धन और समृद्धि की प्राप्ति होगी। आपके पास धन दौलत, शौहरत, गाड़ी, बंगला आदि सारी चीज़ें होंगी और आपको भौतिक सुख भी मिलेगा।
अगर कुंडली में जिस में ग्रह नीच का होकर बैठा हो उस राशि का स्वामी उसे देख रहा हो या फिर जिस राशि में ग्रह नीच का होकर बैठा हो उस राशि का स्वामी स्वगृही होकर युति संबंध बना रहा हो तो नीच भंग राजयोग का सृजन होता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में ये योग होता है वह एक राजा के समान जीवन व्यतीत करता है।
इस योग के कारण व्यक्ति बुद्धिमान बनता है। अगर
कुंडली में यदि चंद्रमा के अतिरिक्त राहु-केतु, सूर्य से दूसरे या बारहवें घर में स्थित हों तो कुंडली में उभयचरी योग बनता है। इस राजयोग वाले व्यक्ति का भाग्य बड़ा उत्तम होता है। ऐसे जातकों का स्वभाव हंसमुख और बुद्धिमान होता है। ये बड़ी से बड़ी बाधाओं को आसानी से पार कर जाते हैं|
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