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जानिए अश्विन मास की इंदिरा एकादशी का शुभ मुहूर्त और सही पूजन विधि

My Jyotish Expert Updated 15 Oct 2021 01:08 PM IST
इंदिरा एकादशी का शुभ मुहूर्त
इंदिरा एकादशी का शुभ मुहूर्त - फोटो : google
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अश्विन मास के कृष्ण पक्ष को जो एकादशी तिथि पड़ती है। उसी एकादशी को इंदिरा एकादशी व्रत के नाम से जानते हैं। अश्विन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ 1 अक्टूबर 2021 शुक्रवार को शाम 7:23 मिनट पर शुरू हो रहा है। पूरी रात रहेगा और अगले दिन अर्थात 2 अक्टूबर 2021शनिवार को सूर्योदय के समय एकादशी तिथि रहेगा और पूरे दिन चलेगा। रात में 7:57 मिनट तक इसका समय रहेगा। जिस दिन एकादशी सूर्योदय के समय रहती है उसी दिन एकादशी का व्रत रखा जाता है। शनिवार 2 अक्टूबर 2021 को एकादशी तिथि सूर्योदय के समय मे है। इसलिए इंदिरा एकादशी व्रत 2 अक्टूबर 2021 को करने वाले लोग इस व्रत को रख सकते हैं। कोई भी एकादशी व्रत का पारायण द्वादशी तिथि के अंदर ही किया जाता है। और उसमें भी हरि वासर जो द्वादशी तिथि की शुरू का एक चौथाई समय होता है। उसे हरिवासर कहते हैं। हरिवासर के बाद एकादशी व्रत का परायण करना सबसे उत्तम समय माना जाता है। तो हरिवासर शनिवार के दिन एकादशी जिस दिन है, रात्रि में द्वादशी तिथि का प्रारंभ हो जाता है। 7:57 मिनट पर ये समाप्त हो जा रहा है। अतः एकादशी व्रत कथा 3 अक्टूबर रविवार को सूर्योदय के बाद कभी भी कर सकते हैं। पूरे दिन एकादशी व्रत का परायण बनेगा। तो पूरे दिन आप इस व्रत का परायण कर सकते हैं।


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 एकादशी व्रत की कथा और महत्व

 एक बार की बात है राजा युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से कहते हैं- हे भगवान! आप हमें अश्विन मास की कृष्ण पक्ष को पड़ने वाली एकादशी एकादशी व्रत को किस नाम से जानते हैं।तथा उसकी कथा क्या है? उसके महत्व के बारे में बताइए। तब श्री कृष्ण जी कहते हैं! कि हे युधिष्ठिर! अश्विन मास के कृष्ण पक्ष को जो एकादशी होती है उसी को इंदिरा एकादशी के नाम से जाना जाता है। प्राचीन काल की बात है , पूर्व काल  में सत्य युग में जो सतयुग था, उसमें इंद्रसेन नाम के एक विख्यात राजकुमार थे जो अब महिष्मतिपूरी के राजा होकर के धर्म पूर्वक प्रजा का पालन करते थे। राजा इंद्रसेन भगवान विष्णु की भक्ति में तत्पर रहते थे। और भगवत संबंधी संपूर्ण कार्य को किया करते थे। और प्रजा का पालन  प्रेम से किया करते थे। एक दिन की बात है राजा अपने परिजनों के साथ सुख पूर्वक बैठे हुए थे और वार्तालाप कर रहे थे। इतने में ही वहां पर कहीं से नारद मुनि अवतरित हुए। नारद मुनि को आता देखकर वह राजकुमार उनका अभिवादन करते हुए उन्हें एक गद्दी पर बैठाते हैं। फिर उनसे उनके आने का कारण पूछते हैं। तब नारद मुनि ने कहते हैं! हे राजन, आज मैं घूमते हुए यमलोक में गया हुआ था। वहां पर मैंने देखा कि आपके पिता वहां पर बैठे हुए थे और वह बहुत दुखी थे। जब उन्होंने वहां पर मुझे देखा  तो उन्होंने कहा। हे भगवान! आप मेरे पुत्र के यहां जाइए और उनसे कहिए कि जो मैं यहां यमलोक में दुख भोग रहा हूं। उससे तृप्ति के लिए इंदिरा एकादशी का व्रत करें और अगर वह इंदिरा एकादशी का व्रत करता है और इस व्रत को करने के बाद उस व्रत का पुण्य फल मुझे दान दे देता है। तो निश्चय ही मुझे इस लोक से छुटकारा मिल जाएगा। और मुझे विष्णुलोक की यानी स्वर्ग लोक की प्राप्ति हो जाएगी।


यह सब सुनने के बाद इंद्रसेन ने नारद मुनि से पूछा। हे भगवन! आप मुझे यह बताइए कि किस एकादशी को इंदिरा एकादशी के नाम से जाना जाता है और यह कैसे किया जाता है। तब नारद जी ने कहा! हे राजकुमार जो अश्विन मास के कृष्णपक्ष में एकादशी तिथि पड़ती है। उसे ही इंदिरा एकादशी व्रत के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी में जिनके भी पितृ यमलोक में पापों को भोग रहे होते हैं। अगर कोई भी इस एकादशी व्रत को रखता है और श्रद्धा पूर्वक उनका श्राद्ध करता है, भगवान नारायण  को सामने रखकर,तो निश्चय ही उसका इस लोक का पाप कट जाता है, और वह विष्णु लोक को प्राप्त करता है। इसके बाद राजकुमार ने नारद जी से कहा। हे भगवान! आप हमें इस एकादशी व्रत को करने की विधि बताइए। तब नारद जी ने कहा! जब अश्विन मास की कृष्ण पक्ष हो और जिस दिन दशमी तिथि हो उसी दिन सुबह केवल एक वक्त भोजन करना चाहिए ,और उस दिन रात्रि में जमीन पर सोना चाहिए, और अगले दिन सूर्योदय के समय अपने दैनिक कार्यों को करना चाहिए, और उसके पश्चात भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए कि, हे भगवान आज मैं निराहार रहकर के आपका व्रत रहूंगा और कल (यानी अगले दिन सुबह) इस व्रत का परायण करूंगा। आप मुझे शरण में लीजिए और मुझ पर कृपा कीजिए। इस प्रकार भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए और व्रत रखना चाहिए। और इसके बाद मध्यम काल में चुकी पितरों का श्राद्ध किया जाता है तो भगवान नारायण को सामने रखकर उनके सामने अपने पितरों का श्राद्ध कर्म करना चाहिए। और पिण्ड दान करना चाहिए। तर्पण करना चाहिए। यह करने के पश्चात ब्राह्मणों को भोजन भी कराना चाहिए। और जो पितरों को पिण्ड बना करके पिंड दिया जाता है उस पिण्ड को सूंघकर गाय को खिला देना चाहिए। रात्रि में जागरण करना चाहिए। भगवान विष्णु का गुणगान करना चाहिए। अगले दिन मौन रहकर भोजन करना चाहिए। इस तरह से इंदिरा एकादशी व्रत को करने से इस व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है। यह कहकर भगवान नारद अंतर्ध्यान हो गए। राजकुमार इंद्रसेन ने इस व्रत को विधिपूर्वक किया और इसके बाद इस व्रत का संपूर्ण फल अपने पिता को दान दे दिया। इस प्रकार इस व्रत को करने से यमलोक से विष्णुलोक की प्राप्ति होती है। अतः भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि जो भी व्यक्ति इस एकादशी व्रत को करता है और इसका संपूर्ण फल अपने पितरों को दान में दे देता है तो उसके पितरों को विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।


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