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संतान सप्तमी 2021 : जानिए संतान सप्तमी की पूजा की तिथि, समय और शुभ मुहूर्त

My Jyotish Expert Updated 14 Sep 2021 07:20 PM IST
Shiv ji ke avtaar
Shiv ji ke avtaar - फोटो : google
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सनातन धर्म के अनुसार संता सप्तमी के दिन भाद्रपद शुक्ल पक्ष की सप्तमी को भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को संतान सप्तमी का व्रत रखा जाता है। माता-पिता संतान की प्राप्ति, उनके अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए यह व्रत रखते हैं। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह पर्व पूरे देश में 13 सितंबर 2021 को मनाया जाएगा। जानिए व्रत की महिमा, पूजन विधि, शुभ मुहूर्त और व्रत कथा। यह भी पढ़ें: पितृ पक्ष 2021: कब शुरू हो रहा है पितृ पक्ष? इसका महत्व क्या है? जानिए श्राद्ध की महत्वपूर्ण तिथियां। संतान सप्तमी का व्रत महिलाओं द्वारा संतान प्राप्ति, उनके स्वास्थ्य और सुखी जीवन के लिए किया जाता है। संतान को सुख देने और जातक के सभी पापों का नाश करने वाला यह सबसे उत्तम व्रत है। यह सप्तमी पुराणों में रथ, सूर्य, भानु, सन्दूक, महती, आरोग्य, पुत्र, सप्तमी आदि कई नामों से भी प्रचलित है। कई पुराणों में इन नामों के अनुसार उपवास के विभिन्न तरीकों का उल्लेख किया गया है। इस व्रत में भगवान शिव और माता गौरी का व्रत और पूजा करने का विधान है. कहीं-कहीं माता-पिता दोनों ही यह व्रत रखते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से भगवान शिव और माता पार्वती प्रसन्न होते हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं और जीवन के अंत में उन्हें शिवलोक में स्थान मिलता है। सोमवार होने के कारण इस व्रत का महत्व और भी बढ़ जाता है।
संतान सप्तमी का शुभ मुहूर्त:- 13 सितंबर 2021 को दोपहर 12:00 बजे से दोपहर 3:10 बजे तक।

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पूजा विधि:

सप्तमी के दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें और भगवान शिव और विष्णु का ध्यान करते हुए पूजा करें। दिन भर उपवास रखकर सफाई से महाप्रसाद (खीर और 7-7 पूआ) बना लें। अब पूजा स्थल की सफाई कर वहां गंगाजल छिड़कें, अब छोटी चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं। उस पर शिव परिवार की मूर्ति या चित्र लगाएं। मूर्ति के सामने कलश रखें। कलश में पांच सुपारी, अक्षत, सिक्के रखें और उस पर एक आम का पल्लव रखें और उस पर एक बड़ा दीपक रखें। दीये में चावल रखकर उस पर शुद्ध देशी घी का दीपक जलाएं। हाथों में फूल और अक्षत लेकर भगवान शिव और माता पार्वती का आवाहन करें। अब भगवान शिव के सामने धूप जलाएं, फूल, चंदन, महाप्रसाद, नारियल, सुपारी, अक्षत आदि चढ़ाएं। शिव और माता पार्वती को भोग के रूप में महाप्रसाद का भोग लगाएं। एक कलावा में 7 गांठें बांधें और बच्चे की सुरक्षा की कामना करते हुए भगवान शिव को अर्पित करें। इसके बाद इसे धारण कर व्रत की कथा सुननी चाहिए। कथा पूरी होने के बाद भगवान शिव की आरती करें और ब्राह्मण को चढ़ाए गए सात पूएं दें और शेष सात पूओं को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।

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