देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु की अर्धांगिनी है, यदि कोई भी व्यक्ति उनकी पूजा करता है तो उसे नारायण की भी कृपा प्राप्त होती है। वह धन-समृद्धि की देवी व आदिशक्ति का रूप है। उनकी पूजा से व्यक्ति को किसी प्रकार का दुःख नहीं रहता। देवी की अलग-अलग स्वरूपों की आराधना की जाती है। मान्यता है की ऐसा करने से देवी भक्तों की मनोकामनाओं को अतिशीघ्र ही पूर्ण कर देती हैं। देवी लक्ष्मी का पहला स्वरुप आदिलक्ष्मी है जिन्हे मूललक्ष्मी भी कहा जाता है।
श्रीमददेवीभागवत पुराण के अनुसार महालक्ष्मी ने ही सृष्टि के आरंभ में त्रिदेवों को प्रकट किया था और इन्हीं से महाकाली और महासरस्वती ने आकार लिया। इन्होंने स्वयं जगत के संचालन के लिए भगवान विष्णु के साथ रहना स्वीकार किया था । यह देवी जीव-जंतुओं को प्राण प्रदान करती हैं, इनसे जीवन की उत्पत्ति हुई है। इनके भक्त मोह-माया से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करते हैं। इनकी कृपा से लोक-परलोक में सुख-संपदा प्राप्त होती है।
महालक्ष्मी धान्य का रूप है धान्य का अर्थ है अन्न संपदा। देवी लक्ष्मी का यह स्वरूप अन्न का भंडार बनाए रखती हैं। इन्हें माता अन्नपूर्णा का स्वरूप भी माना जाता है। यह देवी हर घर में अन्न रूप में विराजमान रहती हैं। इन्हें प्रसन्न करने का एक सरल तरीका है कि घर में अन्न की बर्बादी ना करें। जिन घरों में अन्न का निरादर नहीं होता है उस घर में यह देवी प्रसन्नता पूर्वक रहती हैं और अन्न धन का भंडार बना रहता है।
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