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Aja Ekadashi 2021 Vrat Katha: अजा एकादशी व्रत आज, जानिए इस कथा का महत्व

My jyotish expert Updated 03 Sep 2021 12:16 PM IST
अजा एकादशी व्रत कथा
अजा एकादशी व्रत कथा - फोटो : google
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अजा एकादशी व्रत भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन रखा जाता है। इस साल यह व्रत 3 सितंबर, शुक्रवार को पड़ा है हिंदू धार्मिक नजर से यह व्रत बेहद ही महत्वपूर्ण माना जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह एकादशी का दिन भगवान विष्णु जी को प्रिय होता है। इस दिन व्रत रख के भगवान विष्णु जी की आराधना की जाती है। वही मान्यताओं के अनुसार इस दिन लक्ष्मी जी की भी पूजा की जाती है। माना जाता है कि अजा एकादशी व्रत से मनुष्य के समस्त प्रकार के पापों का भगवान नष्ट करते हैं जो इसका व्रत को सच्चे दिल से रखता है, वह इस लोक में सुख भोगकर अंत में विष्णु लोक में पहुंच जाता है। इस व्रत को रखने का फल अश्वमेघ यज्ञ, कठिन तपस्या, तीर्थों में दान-स्नान आदि से मिलने वाले फलों से भी ज्यादा महत्व होता है।  नहीं आपको बता दें कि यह व्रत एकादशी के दिन से शुरू होकर द्वादशी की तारीख तक की सुबह खत्म होता है। शास्त्रों के अनुसार इस बात को एकादशी के दिन सुबह उठकर नहाने के बाद बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए और एकादशी की रात को जागरण करके श्री हरि विष्णु जी की पूजा आराधना करनी चाहिए। जिन्होंने इस दिन भगवान विष्णु के लिए व्रत रखा होता है उन्हें यह कथा जरूर सुननी या पढ़नी चाहिए इसी से जुड़ी एक पौराणिक काल की बात आपको बताते हैं तो चलिए जानते हैं

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पौराणिक काल में एक अत्यन्त वीर, प्रतापी तथा सत्यवादी हरिश्चंद्र नाम का चक्रवर्ती राजा राज्य करता था। भगवान की इच्छा से उसने अपना राज पाठ अपनी मर्जी से एक ऋषि को दान में दे दिया और जिसके बाद उनकी परिस्थितियां खराब हो गई परिस्थितियां इतनी खराब हो गई कि उन्होंने अपने पत्नी और अपने बेटे को भेज देना पड़ा और यही नहीं उन्होंने खुद को एक चंडाल का दास  बन गए राजा ने उस चाण्डाल के यहाँ कफन लेने का काम किया, किन्तु उन्होंने इस मुश्किल काम में भी सत्य का साथ नहीं छोड़ा। और ऐसे कई वर्ष बीत गए आखिर एक दिन उन्हें अपने इस नीच कर्म पर बड़ा दुख हुआ और इस काम से मुक्ति पाने के लिए उपाय खोजने लगे। 

राजा दास हमेशा ऐसे ही चिंता में रहने लगे कि अब वह क्या करें? ऑल किस प्रकार ऐसे नीच कर्म से वह मुक्ति पाएं ? एक बार की बात है, राजा दास अपनी उसी चिंता में बैठे थे उसी वक्त गौतम ऋषि उनके पास पहुंचे। हरिश्चन्द्र ने उन्हें नमस्कार किया और अपने दुखों से भरी कहानी सुनाई अपने कर्म के बारे में बताया। राजा हरिश्चन्द्र की दुख-भरी कहानी सुनकर महर्षि गौतम भी बहुत दुखी हुए और राजा को उन्होंने इसका उपाय बताया  उन्होंने राजा से कहा- 'हे राजन! भादों के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अजा है। तुम उस एकादशी का विधानपूर्वक निष्ठा से व्रत करो तथा रात्रि को जागरण करो। इससे तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे।' 

महर्षि गौतम इतना राजा को कह कर वहां से चले गये। अजा नाम की एकादशी आने पर राजा हरिश्चन्द्र ने महर्षि के कहने पर जो जो उपाय बताए गए थे उन सभी को विधानपूर्वक उपवास किया और  रात्रि जागरण किया। इस व्रत के प्रभाव से राजा के सभी पाप नष्ट हो गये। राजा के पाप नष्ट होते हैं उस समय स्वर्ग में नगाड़े बजने लगे तथा फूलों की वर्षा होने लगी। उन्होंने अपने सामने ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा देवेन्द्र आदि देवताओं को अपने सामने पाया एवं अपने मृतक पुत्र को जीवित तथा अपनी पत्नी को राजसी वस्त्र तथा आभूषणों से परिपूर्ण देखा। भगवान विष्णु के व्रत के प्रभाव से राजा को पुनः अपने राज्य की और अपने सुखों की प्राप्ति हुई। 

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पौराणिक इस कथा में एक ऋषि ने राजा की परीक्षा लेने के लिए यह सब किया था, परन्तु अजा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ऋषि द्वारा रची गई सारी माया समाप्त हो गई और उसके बाद अंत में में हरिश्चन्द्र अपने परिवार सहित स्वर्ग लोक को चले गए।

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