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कुशोत्पाटिनी अमावस्या पर, जादू टोने व बुरी नजर से होगा बचाव
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को कुशाग्रहणी या कुशोत्पाटिनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है. भाद्रपद माह में आने वाली इस अमावस्या का कई तरह से महत्व वर्णन शास्त्रों में मिलता है. इस समय को कई कार्यों के लिए विशेष माना जाता है. इस दिन पर किए गए दान कार्यों को अमोघ फलदायक माना जाता है. शास्त्रों के अनुसार इस दिन कुश का उपयोग विशेष स्थान रखता है ओर इस दिन कुश को एकत्रित करने का भी नियम रहा है. इस दिन कुश इकट्ठा करने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है.
हिंदू धार्मिक अनुष्ठानों में कुश को बहुत पवित्र माना जाता है. इस दिन पर किए गए जाने वाले धर्म कार्य में भगवान के समक्ष कुश को रखा जाता है कुश के बिना कोई भी पूजा पूर्ण नहीं होती, इसलिए कुश को पवित्र माना जाता है.
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कुशोत्पाटिनी अमावस्या : कुश में स्थित होते हैं त्रिदेव
श्राद्ध-कर्म के प्रतीक कुश, कौवा, गाय को महत्वपूर्ण माना जाता है. इनमें भी 'कुश' को विशेष माना गया है, क्योंकि इसके अग्रभाग में ब्रह्मा बीच में विष्णु और अंत में शिव का वास माना जाता है. हिंदू धर्म में कोई भी पूजा इस कुश के बिना पूरी नहीं मानी जाती है, इसलिए भाद्रपद की अमावस्या को 'कुशाग्रहनी' या 'कुशोत्पतिनी' अमावस्या भी कहा जाता है. इस दिन लोग कुश इकट्ठा करते हैं या खरीदते हैं और साल भर होने वाले यज्ञ, हवन, श्राद्ध-तर्पण आदि जैसे अन्य धार्मिक आयोजनों में इसका उप्योग करते हैं.
कुश न केवल पवित्रता का प्रतीक है बल्कि कई उपयोगी गुण इसमें होते हैं, हवन से पहले यज्ञ कुंड के चारों ओर कुश को रखा जाता है, इसे कुशासन कहते हैं. कुश का महत्व गीता में स्पष्ट रूप से प्रकट होता है जहां भगवान कृष्ण ने कुश आसन की शुभता एवं उसके महत्व को दर्शाया है. पहले कुश, फिर मृग और उस पर कपड़ा बिछाकर आसन का नियम बताया गया है. गीता में ही बताया गया है कि साधकों को मन को कुशायुक्त मुद्रा पर एकाग्र करके योग का अभ्यास करना चाहिए. कुश में विभिन्न सकारात्मक गुण होते हैं और पर्यावरण के लिए भी बहुत उपयोगी माना जाता है. सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के सूतक लगाने से पहले खाद्य पदार्थों में कुश रखने की भी प्रथा बनी हुई है. यह वस्तुओं को शुद्ध बनाए रखने में सहायक होती है.
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कुशाग्रहणी अमावस्या पूजा के लाभ
कुशाग्रहणी अमावस्या का दिन पितृ दोष की समस्याओं, पापों के शमन, बुरी नजर दोष की समाप्ति ओर काले जादू से मुक्ति पाने का समय भी होता है.
कुशाग्रहणी अमावस्या के दिन पूजन द्वारा दुर्भाग्य के प्रभाव से छुटकारा पाने का अवसर प्राप्त होता है.
तंत्र परंपरा में विद्वान कुछ विशेष शक्तियां प्राप्त करने के लिए कुशाग्रहणी अमावस्या को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है.
जिनकी कुंडली में ग्रहण योग है उन्हें इस अमावस्या के दिन किसी भी नकारात्मक स्थान पर नहीं जाना चाहिए.
ग्रह दोषों से बचाव हेतु इस दिन शिव पूजन अवश्य करना चाहिए. इस दिन सिद्धि प्राप्ति का भी उत्तम समय होता है.
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