हिन्दू धर्म में शास्त्रों के अनुसार की गई वैदिक पूजा को ही सर्वश्रेष्ठ पूजा कहा गया है यदि पूर्ण श्रद्धा एवं विधिविधान पूर्वक ईश वंदना की जाए बिना किसी छल -कपट के तो निश्चित ही सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यदि साधक को किसी पूजा में अड़चनों का सामना करना पड़ रहा है, या किसी कारण वश कोई कार्य सफलतपूर्वक पूर्ण नहीं हो पा रहा, या किसी साधना को बार बार करने पर भी अगर सिद्धि प्राप्त नहीं हो रही तो उसके लिए पूजा के समय उपयोग किए जाने वाले आसन के प्रयोग में तो गलती नहीं कर रहे।
शास्त्रों में कहा गया है कि जिस स्थान पर श्री कृष्ण को बैठाया जाता है उसे दर्भासन कहते हैं और जहां साधक भक्त बैठते है उसे आसन कहते हैं।
पूजा करते वक़्त आसन काफ़ी महत्वपूर्ण होता है। विभिन्न प्रकार के पूजा अनुष्ठानों में सिद्ध होने के लिए उसी के अनुसार आसन का उपयोग किया जाना चाहिए व उसके नियमों को ध्यान में रख उनका पालन करना चाहिए। हिन्दू धर्म के अनुसार ईश उपासना के संबंध में कई सारी सलाहें व नियम हैं। विभिन्न देवी - देवताओं के साथ विभिन्न प्रकार के मंत्र,फूल,फल व प्रसाद के साथ - साथ अलग अलग तरह से अर्पित करने की विधि , इन सब चीजों का अपना अलग महत्व है।
आमतौर पर लोग घरों व मंदिरों में ज़मीन पर बैठ कर ही पूजा व मंत्रोच्चारण शुरू कर देते हैं जो की धार्मिक दृष्टकोण से सरासर अनुचित माना गया है। मना जाता है कि पूजा का सारा पुण्य ज़मीन में उतार जाता है, इसलिए कभी भी पूजा जमीन पर बैठकर नहीं करना चाहिए बल्कि आसन या बिछौने पर बैठ कर पूजा करनी चाहिए, इसका अपना महत्व है। व आसन ग्रहण करने के कुछ नियम जिन्हें जानना व पालन करना आवश्यक है!
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