हमारी भारतीय संस्कृति में जीवित रहते भी बड़े -बुजुर्गों का आदर होता हैं तथा उनके मरणोपरांत भी उनके
मोक्ष के लिए श्राद्ध {shradh } एवं कर्म किये जातें हैं। ऐसा कहा जाता हैं अगर श्राद्ध कर्म विधि अनुसार नहीं किए गए हो तो जातक को पितृ दोष { pitri dosh } लग जाता हैं तथा इसके साथ ही उनके पूर्वजों को मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती हैं। हिन्दू धर्म में श्राद्ध एवं पितृ पक्ष {pitri paksh } का एक ख़ास महत्व हैं। आपको बता दें कि इस वर्ष श्राद्ध 20 सितंबर से आरंभ होकर 6 अक्टूबर तक रहेंगे। शास्त्रों में वर्णित साक्ष्य के आधार पर यह माना जाता हैं कि हमारे पूर्वज या पितर हमारे लिए देव तुल्य होतें हैं ,इसी कारण से ज्योतिष शास्त्र द्वारा यह सलाह दी जाती हैं कि हमें पितरगण से संबंधित सभी कार्य उचित समय तथा नियमानुसार कर लेना चाहिए Iपितृ पक्ष {Pitri Paksh } के दौरान यदि हम अपने पूर्वजों का तर्पण नहीं करतें हैं तो हम पर पितृदोष लग जाता हैं । पितृ पक्ष का आरंभ आश्विन मास महीने की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से होता है और आश्विन मास की अमावस्या तिथि को खत्म हो जाता है। श्राद्ध का अर्थ श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों को प्रसन्न करने से है। हमारे शास्त्रों के मुताबिक पितरों के तर्पण से व्यक्ति के जीवन में सुख शांति का वास होता हैं I हमारे सनातन धर्म {sanatan dharma } के अनुसार श्राद्ध की परिभाषा यह बताया गया है कि जिन भी व्यक्ति के परिजन अपना शरीर त्यागकर चले गए हैं, उनकी आत्मा के मुक्ति एवं मोक्ष के लिए सच्ची श्रद्धा के साथ जो तर्पण किया जाता है, उसे श्राद्ध कहा जाता है। यह 16 दिन के अवधि में कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना होता हैं , आइए इस लेख के माध्यम से जानतें हैं कि इस अवधि में क्या क्या करना चाहिए :
सर्वपितृ अमावस्या को गया में अर्पित करें अपने समस्त पितरों को तर्पण, होंगे सभी पूर्वज एक साथ प्रसन्न -6 अक्टूबर 2021