पौराणिक मान्यता: भगवान को भी हुआ था बुखार
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहन,भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा को स्नान पूर्णिमा के दिन 108 घड़े के पवित्र जल से स्नान कराया गया था।इतना स्नान करने के बाद उन्हें बुखार हो गया था।इलाज करने हेतु उनको अनासर घर ले जाया गया था।14 दिन के इलाज के बाद वह पूर्ण रूप से ठीक हुए थे।तब से यह प्रथा हर वर्ष रथ यात्रा से पूर्व 14 दिन पहले तक मनाई जाती है।भगवान के अनासर में रहने के दौरान कुछ सेवको द्वारा बहुत सी रश्में भी निभाई जाती है। इन दिनों भगवान के कक्ष में वैद्यो और सेवको के अलावा कोई और व्यक्ति प्रवेश नहीं करता है।इस दौरान मंदिर में महाप्रभू के प्रतिनिधि अलारनाथ जी की प्रतिमा स्थापित की जाती है तथा उनकी पूजा की जाती है। 15 दिन बाद भगवान स्वस्थ होकर कक्ष से बाहर निकलते है।भक्तो को दर्शन देते है। जिसे नव यौवन नैत्र उत्सव कहते है।इसके बाद द्वितीया के दिन महाप्रभु श्री कृष्ण और बडे भाई बलराम जी तथा बहन सुभद्रा जी के साथ बाहर राजमार्ग पर आते हैं और रथ पर विराजमान होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं।
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