• त्रेता युग में भी यहां पर ही थे श्री हनुमान जी
पौराणिक कथाओं के अनुसार पांडवों ने अज्ञात वर्ष को बिताने के लिए हिमवंत पार करके गंधमादन पर्वत पहुंचे थे। वहां पर जब भीम गंधमादन पर्वत के वनों में सहस्त्रदल कमल लेने के लिए गए तो उन्होंने देखा कि एक बड़ा सा वानर उनके मार्ग में अपनी पूंछ फैला कर सो रहा था। तब भीम ने उस वाले से पूछ हटाने के लिए कहा तब हनुमान जी ने कहां की तुम खुद ही इसे हटा लो। ऐसा कहने पर भीम ने पुंछ हटाने की बहुत कोशिश की परंतु वह अपनी हर कोशिश में विफल रहा। तब भीम को महसूस हुआ कि यह वानर कोई साधारण वानर नहीं है बल्कि एक तेजस्वी वानर है। भीम ने उस वानर से पूछा तो पाया कि वह कोई साधारण वानर नहीं बल्कि पवन पुत्र हनुमान है इसके बाद उन्होंने हनुमान जी को प्रणाम किया। इस तरह हनुमान जी ने दिन के बल का अभिमान दूर किया था तथा यह मान्यता है कि उसी स्थान पर एक मंदिर स्थित है जिसमें हनुमान जी की मूर्ति के साथ उनके पूजनीय श्री राम और माता सीता की मूर्ति भी है।
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