मनुष्य के स्वभाव में अधिकतर देखने को मिलता है कि सामने वाला उस पर पूर्णता भरोसा करें। हर मनुष्य एक दूसरे से भरोसे की उम्मीद लगाएं रहता है और चाहता है कि बिना किसी शक के उसकी बात पर भरोसा करें और उसे समझे। यदि किसी की बात मनुष्य दूसरे मनुष्य को बताता है तो चाहता है कि मैं उसे पूर्णता सत्य मान ले। खैर यह मनुष्य की प्रकृति में कहां देखने को मिलता है। मनुष्य ना तो सामने वाले मनुष्य का विश्वास करता है और ना ही किसी भी बात को पूर्णता सत्य मानता है। मनुष्य के जीवन का
विश्वास एक अभिन्न अंग होता है। दूसरी तरफ धोखा देना अभी मनुष्य का स्वभाव होता है। कोई कार्य सफल पूर्वक हो अथवा षड्यंत्र के माध्यम से मनुष्य कोई कार्य करवाना चाहता हो या दो गुटों में जंग कराना चाहता हूं तो मनुष्य ऐसा षड्यंत्र रचता है कि अपने ही विश्वासपात्र मित्र को धोखा देने में नहीं चूकता। प्रकृति का नियम है सकारात्मक और नकारात्मक विचार। इसी तरह मनुष्य अपने जीवन व्यतीत करने के लिए सकारात्मक व्यवहार एवं नकारात्मक व्यवहार भी बखूबी निभाता है। और अपने आप को सत्य साबित करने के लिए अथवा किसी व्यक्ति को अपने नजदीक लाने के लिए विश्वास दिलाने के लिए अपने तीसरे विश्वासपात्र मित्र को धोखा दे देता है। एक तरह से इन्हें दलाल अथवा आस्तीन का सांप भी कह सकते हैं।
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